मेड़े मेड़े घुमि घूमि पौध लगाँवव, पौध जे जाय हरियाय ।
उपरा से झाँकय सुरज की जोतिया, नीचे धराति गरमाय ।।
आओ न सुरजा चौक चढ़ि बैठौ, देहूँ मैं बेनिया डोलाय ।
तपन धुजा की मिटाओ मोरे सुरजा, मेह का दीजो बोलाय ।।
होत भोर मैं सुरजा मनाएंव, सांझ बदरिया डेरा डारि ।
झिनि झिनि बूंदन बरसे बदरिया, घिरि आई कारी अंधियारि ।
आधी रात घन बरसन लागे, बिजुरी कड़के बड़ी जोर ।
भोर भए मोरी भरि गई कियरिया, पनिया भरा है चारिव ओर
खेत मेड़ हरियाय गए राजा, धरती बिहंसि हरसाय ।
अंचरा पसारे रानी सुरजा निहारें, सुरजा बदर छुप जाएं ।।
**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
धराति: धरती
लगाँवव: लगाना
हरियाय: हरा होना
सुरजा: सूरज
बेनिया: हाथ का पंखा
धुजा: शरीर
झिनि झिनि: छोटी छोटी
बहुत सुन्दर ! बहुत मधुर गीत !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर 🙏💐
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१७-१२ -२०२१) को
'शब्द सारे मौन होते'(चर्चा अंक-४२८१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच में रचना को शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता जी, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारा लोकगीत!😍💕💕
जवाब देंहटाएंमुझे तो हर गीत लिखते वक्त अपनी चाची, दादी की याद आती है, उन्हीं की लय पकड़ती हूं,फिर गीत बनता चला जाता है,अब तो तुम्हारी दादी की भी याद आने लगी है,इसे वो बड़ा ही मधुर गाएंगी 😀😀
हटाएंबहुत सुन्दर ग्राम्य चित्रण
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार कविता जी । आपको अच्छा लगा मेरा सौभाग्य है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार अनुराधा जी, आपकी प्रशंसा को नमन करती हूं ।
हटाएंसुंदर लोक गीत...
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार विकास जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मनोज जी ।
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