छब्बिस जनौरी (अवधी लोकगीत)

छब्बिस जनौरी के दिनवा,
सखी री एक लडुआ खिलाय दियो रे ।

यही रे दिना गणतंत्र बना था
झंडा हमारा अकास छुआ था
लड़िकन का तनी ई बताओ फौज
की गाथा सुनाय दियो रे ।

केतने सहीद भए केतने हेराने
केतने बिछुड़ गए हमहूँ न जाने
घरा वाले रहिया अगोरें सखी री
यहि देसवा पे मिट गए रे ।

बड़ी मुस्किल से आजादी मिली थी
कीमत बड़ी ही चुकानी पड़ी थी
केहू न बच्चन का बतावे सेनानी
कैसे देसवा बचाय गए रे ।

स्कूल विद्या से कुछू नाहीं जनिहैं
खाली कमैहैं औ घर का चलैहैं
मास्टर औ मुंसी न बतावें सखी रे
माँ के फर्ज निभाय दियो रे ।

हम तुम हैं माँ, सखी भारत भी माता
केहू नाहीं भक्ती देस की गाता
अपने से पहिले आपन देसवा
सखी री यही लड़िकन बताय दियो रे

छब्बिस जनौरी के दिनवा,
सखी री एक लडुआ खिलाय दियो रे ।

शब्द: अर्थ
लडुआ: लड्डू
अकास: आसमान  
हेराने: खो जाना
अगोरें: इंतजार करना
लड़िकन,बच्चन: बच्चे
मुंसी: टीचर

**जिज्ञासा सिंह**

जच्चा गीत (बच्चे के जन्म का गीत)

मेरी मित्र के दादी बनने पर लिखा गया गीत:

लाल के हुए मेरे लाला, 
पिया जी तुम्हें दादा कहेगा ।
लागे है कृष्ण गोपाला, 
पिया जी तुम्हें दादा कहेगा ।।

भोर में सूरज सा चमकेगा, 
दिन में उजाला करेगा...
पिया जी तुम्हें दादा कहेगा ।

वो गुलशन का फूल होगा, 
खिल के गुलाब सा महकेगा...
पिया जी तुम्हें दादा कहेगा ।

अंबर जैसा ऊँचा होगा, 
चंदा सा चमकेगा....
पिया जी तुम्हें दादा कहेगा ।

अपने घर का राजा होगा, 
शीश मुकुट दमकेगा....
पिया जी तुम्हें दादा कहेगा ।

कान्हा जैसा प्यारा होगा, 
राम सा राजा बनेगा....
पिया जी तुम्हें दादा कहेगा ।

**जिज्ञासा सिंह**