अमवा की पतिया म बाँधि कलावा, बंदनवार सजाय रे ।।
चारो कोने कलस म नीर भरैबे, गंगा मैया से मंगाय रे ।
कलस के ऊपर चौदिस दियना, देबै सखी आजु बारि रे ।।
आओ कागा आओ नेवत देइ आओ, बिरना का मोरे बोलाय रे ।
पहला नेवत मैंने गनपति दीन्हों, दूजा नैहर भिजवाय रे ।।
तीसरा नेवत सखी टोला परोसी, संग दीन्हों सब रिस्तेदार रे ।
यही रे मांड़व बीच सबही बिठइबे, चंदन तिलक लगाय रे ।।
बर और कन्या बैठें चंदन चौकिया, सब कोई देहि आसीस रे ।
चाँद सुरज जैसी जोड़ी अमर हो, जीयहिं लाख बरीस रे ।।
**जिज्ञासा सिंह**