फ़िरंगी जब फाँसी सुनाई (अवधी लोकगीत)



भूले नाहिं भूले वही रतिया
फिरंगी जब फाँसी सुनाई ।
फाँसी सुनाई सखी, 
निंदिया न आई,
कैसे जियय उनकी माई।
फिरंगी जब फाँसी सुनाई ।।

वही रे सिपहिया के 
जियरा की कौन कहूँ ?
सुनि सुनि पीर सखी 
रोऊँ औ मौन रहूँ
देसवा का पहिरे, देसवा का ओढ़े रहे
देसवा की खातिर मौत खाई 
फिरंगी जब फांसी सुनाई ॥

ऐसे मजबूत तीनों 
नैना न नीर बहे
मातु पिता सब 
घर कुर्बान अहे
चाँद सुरज संग चमके सितारा बन
अमर सपूत कहाई ।
फिरंगी जब फाँसी सुनाई ॥

अपने भगत सिंह
ऐसे बलिदानी रहे
राजगुरु औ 
सुखदेव सेनानी रहे
नीव भरी आज़ादी की अपना ही खून देके
 मुक्त ये धरती कराई
फ़िरंगी जब फाँसी सुनाई ॥

**जिज्ञासा सिंह**