देवी गीत

मेरे मैया की ऊँची अंटारी,मैं तो धीरे धीरे चढ़कर आई
सास ससुर को साथ में लाई,अपने माता पिता भी लाई
मैं तो....

अपनी मैया के लिए चुनरी भी लाई,चुनरी मैं लाई
 मैं तो भोजन भी लाई,मैं तो दीप जलाने आई, 
मैं तो धीरे धीरे....

भरी रहें मेरे देश की नदियाँ, देश की नदियाँ,
औ ताल तलरियाँ  
मैं तो बरसात मांगन आई, मैं तो धीरे धीरे ....

फूलों फलों से लदीं हों बगियाँ,
 बागों में उड़ती हों, तितली औ चिड़ियाँ  
मैं तो हरियाली मांगन आई,मैं तो धीरे धीरे ....

देश की मेरे भरी हों भंडारे, चलते हो लंगर 
और खाएं कतारें,
 मैं तो अन धन मांगन आई मैं तो धीरे धोरे.......

मेरे देश का आँगन भरा हो, सद्भाव शिक्षा का दीप जला हो
मैं तो घर बार मांगन आई, मैं तो धीरे धीरे...

मेरे मैया की ऊँची अटारी, मैं तो धीरे धीरे चढ़ कर आई ।।

**जिज्ञासा सिंह**

ग्राम पंचायत चुनाव (स्त्री विमर्श -लोकगीत)


तुमको वोट न देबै, चाहे हम नोटा पे डाल आई रे,


पिछली बार हम तुमको जितायों 

कालोनी, कैट्टेल कुछू नाहीं पायों 

गलियन में भरा मोरे कचरा, प्रधान जी कीचड़ में फँस गई रे ।

 तुमको............।।


किसी के दुआरे पे सोलर लगा है 

किसी के दुआरे खडंजा गड़ा है 

हमरे दुआरे भरा गड्ढा, प्रधान जी सड़कें भी धँस गई रे । 

तुमको...........।।


अपना तुम रहो बाबू महला दुमहला 

हमरी झोपड़िया में पानी चुए ला 

भीग जाय मोरी चदरिया, मैं रात दिन पानी उलच रही रे ।

तुमको..........।।


तुम से कहा राशन कार्ड बनवा दो 

मनरेगा में काम दिला दो 

सास,ससुर दोनो बूढ़े, प्रधान जी पेंशन भी रुक गई रे  ।

तुमको............।।


पड़ा चुनाव तब तुमका मैं देखी 

नाहीं तो तुम हो जाओ विदेसी 

ढूँढ़न कहाँ तुम्हें जाऊँ, प्रधान जी मैं तो हूँ कम पढ़ी रे ।

तुमको............।।


अबकी बार हम उसको जितावें 

गांव की उन्नति जो कर के दिखावे

हर दम सुने मोरी बात, अभी तक धोखे में पड़ी रही रे ।

तुमको.............।।


गाँव का रूप बदलना होगा

स्वच्छ मोहल्ला करना होगा

तभी मिलेगा मेरा वोट,वरन मैं तो मैके को जाय रही रे

तुमको...…......।।


**जिज्ञासा सिंह**