जग छिड़ गइ लड़ाई (लोकगीत)


कि हाँ जग छिड़ गइ लड़ाई ।
चलो गुइयाँ सिव का मनाय लेई
बड़ी बिपदा है आई ।
कि हाँ जग छिड़ गइ लड़ाई ।।

हमने कही सखि सब जग अपना
जादा के तू नाहीं देखव सखी सपना
का मिलिहैं का लइके जैहैं
खाली हाथ जग जाई ।।

खग औ बिहग सबै केउ ब्याकुल
देस बिदेस हर एक कुनबा कुल 
अइसा जुद्ध जे छेड़े बिदेसी
हमरी आँख भर आई ।।

नान्हें नान्हें लड़िका धुआँ सने हैं
घर फुलवरिया जले पड़े हैं
मर्द मेहरुआ सब मरि कटि जाएँ 
ऐसी मिसाइलि चलाई ।।

यहि संसार गुमान भरा है
साँति औ संयम संदेस हमरा है
नाहीं तो दुनिया है बम पर बैठी
सीधे सरग का जाई।।

हम अपने सिव का सबै कुछ बतइबै
गलती क अपने क्षमा माँगि अइबै
हमरे देस ऐसी बिपदा न डारेव
तोहरे सरण भोले आई ।।

हमरे त भोले सखी बड़ बड़ दानी
दुनिया की वय समझयं नादानी
जे केउ उनके सरण म आवे
सबकी मुसीबत मिटाई ।।

कि हाँ जग छिड़ गइ लड़ाई ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
गुइयाँ: सखी, सहेली
सरग: स्वर्ग
मेहरूआ: स्त्री, औरत
सरण: शरण
साँति: शांति 

रामजी बैठे सिंहासन (सोहर)

              आजु अवध बड़ी भीर तो, नौबत बाजय हो -२
सखी लौटे हैं करि बनबास, राम सीता लछिमन हो
आरति थाल सजावहिं, तव माता कौसिल्या रानी हो -२
सखी छज्जे पे चढि के निहारें, ललन कहां पहुंचे हैं हो

आवत लख लख भीर, राम नाहीं लौकइं हो -२
सखी अगवा से सब हटि जाव, ललन मुख देखहुं हो
चौदह बरस कइसे बीते, तुमहिं का बताववं हो -२
सखी दिन तो कटे कटि जाय, रैन लागे बैरन हो

आजु नगर मोरा बिहंसय, भवन मोरा हुलसय हो -२
सखि राजा दसरथ बिनु सून, हृदय मोरा व्याकुल हो
अवधनगर केरी सखियां, कौसिल्या समुझावयँ हो -२
रानी धीर धरहु मन आजु, अवध दिन लौटे हैं हो

हिरदय से लागीं सुमित्रा रानी, चरनन कैकेई रानी हो -२
दीदी मोरी मती गई बौराई, ललन बन भेजिवं हो
नीर बहावें तीनिव रानी, तव सरजू बहन लागीं हो -२
सखि सरजू ने दीन्हा वरदान, तिलक चढ़य रघुवर हो

रघुवर बैठे सिंहासन, हनुमत भुइयां गहे हो -२
सखि भरत, सत्रोहन औ लछिमन, भइया के बगल ठाढ़े हो
ऋसिमुनि तिलक लगावइं, संखधुनि बाजइ हो -२
सखि होवन लागे मंगलचार, कौसिल्या जियरा हुलसय हो

**जिज्ञासा सिंह**
 २ का मतलब -दोबारा
नौबत: वाद्ययंत्र
लौकइं: दिखना
आवत: आना
बताववं: बताना
बैरन: बैरी, दुश्मन
हुलसय: खुशी
हिरदय,जियरा: हृदय
भुइयां: ज़मीन
भेजिवं: भेजना

जयमाल गीत

करि सोलह सिंगार, पिया जी की राह निहारूँ ।

दर्पण देखूँ, देखि लजाऊँ ।
अपने पिया की छवी सजाऊँ ।
जैसे राजकुमार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

सिर पे पगड़ी, बाँधी होगी ।
टीका चंदन रोली होगी ।।
अँखियाँ करेंगे कजरारि, पिया जी की राह निहारूँ ।।

हाथी घोड़ा साज पिया जी ।
सोलह कहारों वाली पलकी ।।
बैठ के आएँगे द्वार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

मुझको निहारेंगे साजन जी ।
दिल में बसाएँगे साजन जी ।।
डालेंगे जयमाल, पिया जी की राह निहारूँ ।।

हमरी बिंदिया, हमरा कजरा ।
हमरी नथिया, हमरा गजरा ।।
उनसे सब सिंगार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

करि सोलह सिंगार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

**जिज्ञासा सिंह**