विवाह में प्रकृति का निमंत्रण (अवधी बियाहू गीत)


मेड़े मेड़े घुमि घूमि पौध लगाँवव, पौध जे जाय हरियाय ।
उपरा से झाँकय सुरज की जोतिया, नीचे धराति गरमाय ।।

आओ न सुरजा चौक चढ़ि बैठौ, देहूँ मैं बेनिया डोलाय ।
तपन धुजा की मिटाओ मोरे सुरजा, मेह का दीजो बोलाय ।।

होत भोर मैं सुरजा मनाएंव, सांझ बदरिया डेरा डारि ।
झिनि झिनि बूंदन बरसे बदरिया, घिरि आई कारी अंधियारि ।

आधी रात घन बरसन लागे, बिजुरी कड़के बड़ी जोर ।
भोर भए मोरी भरि गई कियरिया, पनिया भरा है चारिव ओर

खेत मेड़ हरियाय गए राजा, धरती बिहंसि हरसाय ।
अंचरा पसारे रानी सुरजा निहारें, सुरजा बदर छुप जाएं ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ 
धराति: धरती 
लगाँवव: लगाना 
हरियाय: हरा होना 
सुरजा: सूरज
बेनिया: हाथ का पंखा
धुजा: शरीर
झिनि झिनि: छोटी छोटी

विवाह गीत..(अवधी बियाहू )



दूर देस मोरी बेटी गई हैं:२
पढ़न बड़ी रे किताब ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

अट्ठरा बरस बेटी होन को आईं:२
बाबा ने ठाना बियाह ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

रोय रोय बेटी ने घर भर दीन्हा: २
हम तौ पढ़न दूर जाब ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

बाप न भेजा औ बाबा न भेजा: २
हम करिके भेजा बिसवास ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

सबही के बेटी बियहि गईं ससुरे: २
हमरी पढन दूरदेस ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

कोई मारे बोली तौ कोई ठिठोली: २
करौ जल्दी बेटी बियाह ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।

हम कही बेटी जौ पढ़ि कुछ बनिहैं: २
मिलि जैहैं सुघर दमाद ।
सखी रे फिर ब्याह रचाऊँ ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ 
बड़ी किताब: उच्च शिक्षा 
बिसवास: विश्वास 
ठिठोली: मज़ाक़ 
ससुरे: ससुराल 
सुघर: अच्छा, पढ़ा लिखा कमाऊ