होली और फगुआ गीत…

(१)फागुन मा बलमा धरयं दोकान

******************************

फागुन मा बलमा धरयं दोकान फागुन मा 


वहि रे दोकनियाँ म रंग बिकत है 

लाल औ पीला मिलय गुलाल फागुन मा।


वहि रे दोकनियाँ म चुनरी बिकत है

रंगबिरंगी चटख गोटेदार फागुन मा।


वहि रे दोकनियाँ मिठइया मिलत है

लड्डू औ छेना, जलेबी रसेदार फागुन मा॥


वहि रे दोकनियाँ सिंगार मिलत है

सेंदुर औ बिंदिया कजर चोटी बार फागुन मा।


सखियन क लय हम जइबय दोकनियाँ 

अपना तौ लेब उनका देबय उधार फागुन मा।

🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨

(२) ऐसी घिरी हैं घटाएँ

**********************

ऐसी घिरीं हैं घटाएँ , मोरा जिया भरमाएँ

मोरी चुनरी उड़ाएँ.. ऐसी घिरीं हैं…


घिरीं घटाएँ रंग लेके आएँ.. लाल लाल लेके आएँ, पीली पीली ले के आएँ… ऐसी घिरीं हैं…


घिरी घटाएँ रंग बरसाएँ.. हरा हरा बरसाएँ.. नीला नीला बरसाएँ…ऐसी घिरीं हैं…


घिरी घटाएँ मन हर्षाएँ… मेरे केश उड़े जाएँ… मेरे पाँव नाच जाएँ… ऐसी घिरी हैं…


घिरी घटाएँ जीना सिखाएँ... बरखा ले आएँ… 

मेरे खेत भर जाएँ… ऐसी घिरी हैं…।

🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨🥁🎨

**जिज्ञासा सिंह**

फौज हमय जिव-जान से प्यारी.. दो लोकगीत


(१)
सुन लेव पिताजी हमार, हमहूँ फौज मा जइबे।
साहब बनब सरकार, नजर दुसमन कय गिरइबे।।

हाथ म हम बन्दुखिया लेबै, अँखियाँ नाल म गड़इबे
सरहद पर घुसपैठ जो देखबै, बैरी मार देखइबै।
पिताजी हमहूँ फौज मा जइबे।

जगदम्बा, दुर्गा हम बनबै, रानी झाँसी बन जइबै,
देस के आगे परिवार न देखबै, जियरा देस पै लुटइबै
पिताजी हमहूँ फौज मा जइबे।

हमका पिताजी अबला न समझो, मौके पे सक्ति देखइबै 
सबल लोग पीछे रहि जैहैं, आगे कूद हम लड़बै,
पिताजी हमहूँ फौज मा जइबे।

फौज हमय जिव जान से प्यारी, सेवा कैइके देखइबै 
चाहे जेतनी होय परिच्छा,पास होइकै देखइबै,
 पिताजी हमहूँ फौज मा जइबे।

(२)
सैंया भए सेनानी छोड़ मोहें 
सरहद निकल गए ।
गोदिया म दइके निसानी
होत भिनुसारे निकल गए॥

खाकी-खाकी वर्दी, पे गोल-गोल टोपिया
हथवा में लय के पिया बैग औ बकसिया
बोलन लागे जैसे कागा, 
कोयलिया न बोली निकल गए ॥

लंबे लंबे पिया मोरे,चौड़ी-चौड़ी छतियाँ
संवरा बदन, ऊँचा माथा, बड़ी अँखियाँ
भूले नाहिं सुधि बिसराए,
हाय सूरतिया निकल गए ॥

पल ऐसे बीते जैसे मास दिवस बीते
पिया बिन मोरे हर रंग रैबार रीते
नीकी नाहीं लागे यही दुनिया,
बनाय बावरिया निकल गए ॥

अपने पिया को दिया बचन निभाय रही 
सारी जिम्मेवारी सीस माथे से लगाय रही 
देसवा है तन मन धन सब,
धराय के कसमियाँ निकल गए ॥

**जिज्ञासा सिंह**

सागर का दीवान कौन है ?

 

साधो ! मन ना कहिए जाई

तन आभूषण देखि लोभइहैं

मन देइहैं बिसराई 


कित डूबे, कित बहि उतराने

नदियाकौन से सागर छाने

केहि नौका पे बैठि चले पिय

किनकी गही कलाई 


काहे पे भरमेकब बेल्हमाने

देखे कितने ठौर ठिकाने

चढ़ि आसन नौ मन इतराने

उतरत पीर बढ़ाई 


ये जीवन सागर सम गहरा

घाट-घाट पर उनका पहरा

सागर का दीवान कौन है

देखी का परछाई ?


अब जानी मन के भरमन को

साँच-झूठबिचरत जीवन को

एक-एक पग क़ीमत डग की

देन परत उतराई 


**जिज्ञासा सिंह**

कतकी नहान (पूर्णमासी मेला)


मेला लगा है बड़ी धूम, सुनो री सखी ।

इक्का न चलबै, तांगा न चलबै ।
पैदल चलबै झूम झूम, सुनो री सखी ॥

आगे न चलबै पीछे न चलबै ।
चलबै बनाई एक झुंड, सुनो री सखी ॥

धोती भी लिहे चलौ, चुनरी भी लिहे चलौ ।
खूब नहैबे आज कुंड, सुनो री सखी ॥

सतुआ पिसान सखि, कुछ नाहीं बंधबै ।
खाबै जलेबी दही ढूँढ, सुनो री सखी ॥

सर्कस देखबै, झूलव झुलबै ।
गोदना गोदइबै सतरंग, सुनो री सखी ॥

**जिज्ञासा सिंह**

देवी गीत..

 

(चुपके चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


भोर भये रवि आने से पहले

देख नहीं मैं पाईभवानी मोरे अँगनवाँ


बाग हँसन लगेकमल खिलन लगे

कलियाँ हैं लहराईंभवानी मोरे अँगनवाँ


गोदिया बालक हँसि मुस्काने

मोहें नज़र नहीं आईं,भवानी मोरे अँगनवाँ


व्याकुल मन मोरा माँ को ढूँढ़े

दिख जाए परछाईंभवानी मोरे अँगनवाँ


मन देखाअंतर्मन देखा

हृदय बीच मुस्काईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


नेह  श्रद्धा की छवि सुंदर

नैनन बीच समाईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


चुपके-चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


(सारे नगर मची धूम जगदंबे आइँ

गाँव-शहर मची धूम माँ दुर्गे आइँ


पेड़ पकड़िया सब हर्षाने

चलीं हवाएँ झूम-झूम जगदंबे आइँ


नदियाँ बहन लगीं कुआँ भरन लगे

बादल बरसा घूम-घूम जगदंबे आइँ


अपनी अँटरिया पे चढ़ि-चढ़ि देखूँ

जयकारे नभ रहे चूम जगदंबे आइँ


आगे-आगे मैया पीछे संसार चले

अगल-बगल चले झुंड जगदंबे आइँ


जनगण मैया की अरती उतारें

बाजन बाजे बूम-बूमजगदंबे आइँ 


सारे नगर मची धूम जगदंबे आइँ 


**जिज्ञासा सिंह**

सोहर गीत..(हास्य व्यंग)

(१) जच्चा हमारी कमाल.. लगें फुलगेंदवा।

खाय मोटानी हैं चलि नहिं पावहि
फूला है दूनो गाल.. लगें फुलगेंदवा।

पांव है सिरकी पेट है गठरी
लुढ़कें जैस फुटबाल.. लगें फुलगेंदवा।

भाव देखावें कि अम्मा बनी हैं
ठोकें रहि रहि ताल.. लगें फुलगेंदवा।

भोर भए नित नखरा देखावें
रात भर रोया है लाल .. लगें फुलगेंदवा।
जच्चा हमारी कमाल, लगें फुलगेंदवा ॥


(२) कन्हैया जी के कजरा लगइहौं नाहीं भौजी।

ई कजरा बड़े मान मनौती
नेग पहिले लेब सुनहु मोरी भौजी।

हाथ के कंगनवा और नाक के झुलनियाँ
कमर करधनियां लेब मोरी भौजी ।

नाहीं नुकुर जो करिहौ तो सुन लेव
कजर नाहीं देब तू सुनो मोरी भौजी ।

इतनी बचन सुन भौजी हंसन लगीं
पहनाय दिया कंगना औ कहें सुनो ननदी।

अगले बरस जब करिहैं जन्मदिन
करधनियाँ औ झुलनियाँ पहिनाय दैहौं ननदी ।
कन्हैया जी के कजरा लगइहौं नाहीं ननदी ॥


(३) घर गुलजार है, लल्ले की बुआ आई हैं
लाल की बधाई, बधाई बुआ लाई हैं ॥

चाँद और तारों का खडुआ गढ़ाई हैं
भैया से भतीजे, के पाँव पहनाई हैं ॥
घर गुलज़ार….

फूल और कलियों से कपड़ा कढ़ाई हैं।
लाल को झिंगोलिया औ टोपी पहनाई हैं ॥
घर गुलज़ार….

हरे हरे तोता चिरैया ले आई हैं
लाल के पलनवा में खूब सजाई हैं ॥
घर गुलज़ार….

चाँदी कजरौटा कजरवा पराई हैं
लालन की छठिया में अँखियाँ सजाई हैं ।

घर गुलज़ार है, लल्ले की बुआ आई हैं ॥

**जिज्ञासा सिंह**

बैरी बदरवा

गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ।
हमरी अटरिया पे झाँकि दिखावें
हमहीं बुनियाँ को तरसें ॥
गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥

जाय के खेतवा से मटिया लै आई
बारे कुम्हरवा से घइला गढ़ाई
हमरी तलरिया से पनिया उड़ाय लिययँ
हमहीं पनियाँ का तरसैं ॥

भोर भए घनि-घनि खुब छावयँ
दुपहरिया म टपक दिखावयँ
साँझ परे अपने घर भागयँ
नान्ह चिरइयन जैसैं ॥

बैरी बदरवा का घर से भगाय दूँगी
अपनी अंटरिया से दूर उड़ाय दूँगी
जहाँ से आए हो वहीं लवट जावो
जौने रहिया डगर से ।
 गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥

गोइंड़े- नज़दीक ही
बुनियाँ- बूँदें

**जिज्ञासा सिंह**