चुनरिया धानी लैहौं (कजरी गीत )

आयो सावन मास चुनरिया धानी लैहौं

हरे हरे अम्बर,हरी हरी धरती 
हरे हरे बूँद बदरिया झरती 
कजरी गाय सुनैहौं, चुनरिया धानी...

हरी हरी मेहंदी पीस रचाई 
हरी हरी चुड़ियों से भरी है कलाई
बेसर नाक पहिरिहौं,चुनरिया धानी...

अठरा बरस की मैं  ब्याह के आई
मैं बनी राधा पिया किशन कन्हाई
झूम के रास रचैहौं,चुनरिया धानी...
 
निमिया की डारि पे पड़ गए झूले
रेशम डोरी लागी रंग सजीले  
मारि पेंग नभ छुइहौं,चुनरिया धानी... 

कोई सखी काशी कोई सखी मथुरा
सुधि मोहें आवे लागे न जियरा
पाती भेजु बुलवइहौं,चुनरिया धानी...

अम्मा औ बाबा की याद सतावे
रहि रहि करेजवा में पीर मचावे
बीरन आजु बुलैहौं,चुनरिया धानी...

आयो सावन मास चुनरिया धानी लैहौं...

 **जिज्ञासा सिंह**

बौने पौधे का दर्द (बोनसाई)

मैने गमले में बगिया लगाई
एक नाम दिया बोनसाई

पहले पेड़ से टहनी को काटा,
कई टुकड़ों में फिर उसको बांटा
गाड़ मिट्टी में कर दी सिंचाई
और नाम दिया बोनसाई

दिन बीते, महीनों बीते
उस दिन हम प्रकृति से जीते
जब टहनी में कोपल आई
और नाम दिया बोनसाई

छोटा गमला लिया थोड़ी मिट्टी भी ली
थोड़ा मौरंग लिया थोड़ी गिट्टी भी ली
फिर गमले में कलम सजाई
और नाम दिया बोनसाई

पत्ती आने लगी, शाखा भरने लगी 
कोने कोने में बगिया सजने लगी 
लेने आने लगे सौदाई 
और नाम दिया बोनसाई 

कुछ सौ में बिके कुछ हज़ार में 
वट पीपल भी बेचा बाज़ार में 
ख़ूब होने लगी फिर कमाई 
और नाम दिया बोनसाई

वट सावित्री का दिन आया 
बौने पौधे को ख़ूब सजाया 
की पूजा औ फेरी लगाई 
और नाम दिया बोनसाई 

मैंने माँगी दुआ विटप रोने लगा 
और रो करके मुझसे यूँ  कहने लगा 
क्यों की तुमने मेरी छँटाई 
और नाम दिया बोनसाई 

पहले काटा मुझे फिर बौना किया 
मुझे रहने को छोटा सा कोना दिया 
तुम्हें मुझपे तरस न आई  
और नाम दिया बोनसाई 

कितने निष्ठुर हो तुम नर नारी 
हो चलाते कुल्हाड़ी कटारी
अब साँसों की देते दुहाई 
और नाम दिया बोनसाई 

 **जिज्ञासा सिंह**

बच्चे और वृक्ष -बचपन के साथी ( लोकगीत )

  


तर्ज.. वंशी तो बाजी मेरे रंग महल में..
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सपने में आज सखी तरुवर देखा
तरुवर के नीचे खेलें बालक देखा

तरुवर के नीचे छहाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर से हँस बतियाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर की डाल चढ़ जाएँ, सखी नन्हें बालक, अँखियन  देखा
सपने में आज.......

तरुवर से फूल पत्ती पाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर से फल सब्जी खाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर पे लटके झूला झूले सखी नन्हें बालक,अँखियन देखा 
सपने में आज.......

तरुवर की लकड़ी की गाड़ी दौड़ाएँ बालक
तरुवर की लकड़ी की नाव चलाएँ बालक
तरुवर की धनुष पे तान चढ़ाएँ, बालक, अँखियन देखा
सपने में आज.......

तरुवर की पाटी पे क ख और ग घ लिखें
तरुवर की कुर्सी पे बैठ किताबें पढ़ें
तरुवर की वीणा पे गान मधुर गावें, अँखियन देखा
सपने में आज सखी.......

ऐसे में प्यारी सखी,आओ न हाथ मिलाएँ  
सब मिल के पेड़ लगाएँ, हरियाली हम फैलाएँ,
अपने बच्चों के लिए धरती को खूब सजाएँ, खींचें एक रेखा
सपने में आज सखी.......

मेरे स्वपन मेरी संखियों को भाने लगे
हम सब मिल जुल के पेड़ लगाने लगे
बच्चों के लिए हरियाली फैलाने लगे,जंगल मुस्काने लगे
धरती माँ मुसकायीं,सज धज हर्शायीं जैसे सुरेखा
सपने में आज सखी......

**जिज्ञासा सिंह**