तर्ज.. वंशी तो बाजी मेरे रंग महल में..
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सपने में आज सखी तरुवर देखा
तरुवर के नीचे खेलें बालक देखा
तरुवर के नीचे छहाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर से हँस बतियाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर की डाल चढ़ जाएँ, सखी नन्हें बालक, अँखियन देखा
सपने में आज.......
तरुवर से फूल पत्ती पाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर से फल सब्जी खाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर पे लटके झूला झूले सखी नन्हें बालक,अँखियन देखा
सपने में आज.......
तरुवर की लकड़ी की गाड़ी दौड़ाएँ बालक
तरुवर की लकड़ी की नाव चलाएँ बालक
तरुवर की धनुष पे तान चढ़ाएँ, बालक, अँखियन देखा
सपने में आज.......
तरुवर की पाटी पे क ख और ग घ लिखें
तरुवर की कुर्सी पे बैठ किताबें पढ़ें
तरुवर की वीणा पे गान मधुर गावें, अँखियन देखा
सपने में आज सखी.......
ऐसे में प्यारी सखी,आओ न हाथ मिलाएँ
सब मिल के पेड़ लगाएँ, हरियाली हम फैलाएँ,
अपने बच्चों के लिए धरती को खूब सजाएँ, खींचें एक रेखा
सपने में आज सखी.......
मेरे स्वपन मेरी संखियों को भाने लगे
हम सब मिल जुल के पेड़ लगाने लगे
बच्चों के लिए हरियाली फैलाने लगे,जंगल मुस्काने लगे
धरती माँ मुसकायीं,सज धज हर्शायीं जैसे सुरेखा
सपने में आज सखी......
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुंदर सृजन।🌻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी,आपकी इस ब्लॉग पर उपस्थिति देखकर बहुत हर्ष हुआ ।
हटाएंतरुवर की पाटी पे क ख और ग घ लिखें
जवाब देंहटाएंतरुवर की कुर्सी पे बैठ किताबें पढ़ें
तरुवर की वीणा पे गान मधुर गावें, अँखियन देखा
सपने में आज सखी.......
वाह!!!! यादों की। मीठी कसक जगाती और जगी आँखो में सुहाने सपने सजाती रचना प्रिय जिज्ञासा जी ! इस स्वपनदर्शिता कलम को नमन। सामूहिक चेतना से ये स्वप्न कोई असंभव नहीं। इस सद्भावना भरे सृजन के लिए आभार और शुभकामनाएं 👌👌👌🙏💐💐💐🌷
आपकी सुंदर भावों भरी प्रतिक्रिया हमेशा नव ऊर्जा दे देती है, बहुत बहुत आभार रेणु जी । सादर नमन ।
हटाएंतरुवर के नीचे छहाएँ, सखी नन्हें बालक
हटाएंतरुवर से हँस बतियाएँ, सखी नन्हें बालक
तरुवर की डाल चढ़ जाएँ, सखी नन्हें बालक, अँखियन देखा
सपने में आज.///
आपके इस भावपूर्ण सृजन की देहरी पर फिर से उपस्थित हूँ जिज्ञासा जी |यूँ ही जीवन के गीत रचती रहें | मेरी शुभकामनाएं और स्नेह |
छात्र-जीवन का बहुत सुन्दर और सजीव चित्रण !
जवाब देंहटाएंकक्षा 4 और 5 में हमने पेड़ों की छाँव तले ख़ूब पढ़ा था.
अल्मोड़ा में जाड़ों के दिनों में मैंने भी विद्यार्थियों को क्लास-रूम्स के बजाय खुले आसमान के नीचे बहुत बार पढ़ाया था.
आदरणीय सर, आपकी यही सुनहरी यादों की अनुभूति भरी टिप्पणी बहुत उत्साहित करती है, और नव सृजन की प्रेरणा देती है ।
हटाएंसपने साकार हों । बहुत खूबसूरत गीत ।।
जवाब देंहटाएंपढ़ते हुए चारों ओर हरियाली नज़र आ रही ।
आदरणीय दीदी,आपकी प्रशंसनीय आत्मीय प्रतिक्रिया को हृदय तल से नमन करती हूं ।सादर ।
हटाएंतरुवर की पाटी पे क ख और ग घ लिखें
जवाब देंहटाएंतरुवर की कुर्सी पे बैठ किताबें पढ़ें
तरुवर की वीणा पे गान मधुर गावें, अँखियन देखा
सपने में आज सखी.......वाह अनुपम लेखन...। बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने...। मन कहीं उसी तरुवर के आसपास रहना चाहता है खूब बधाई।
इतनी सुंदर, सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार एवम नमन ।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार( 11-06-2021) को "उजाले के लिए रातों में, नन्हा दीप जलता है।।" (चर्चा अंक- 4092) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपके निरन्तर प्रोत्साहन का हार्दिक स्वागत करती हूं, मेरे इस ब्लॉग की रचना का चर्चा मंच में शामिल होना, मेरे लिए प्रेरणा और हर्ष का विषय है,आपका बहुत बहुत आभार,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
बचपन का बहुत ही सजीव चित्रण किया है,जिज्ञासा दी आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति,इस ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का हार्दिक स्वागत करती हूं, सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर गीत हरियाली बिखेरता हुआ!
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी, मेरे इस ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी मन को मोह गई,आप घर में होने वाले ढोलक के लोकगीतों से परिचित जरूर होंगी। आप इसकी तर्ज के सोहर,जो बच्चों के होने या मुंडन में गाए जाते थे बचपन में जरूर सुनी होंगी,रेडियो पे भी आता था,अभी तो पता नहीं अगर आज भी सुनें तो मन खुशी से बागबाग हो जाएगा ।आपका बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंमेरे स्वपन मेरी संखियों को भाने लगे
जवाब देंहटाएंहम सब मिल जुल के पेड़ लगाने लगे
बच्चों के लिए हरियाली फैलाने लगे,जंगल मुस्काने लगे
धरती माँ मुसकायीं,सज धज हर्शायीं जैसे सुरेखा
सपने में आज सखी......
अपनी बचपन की यादें तो भुलाये नहीं भूलती है। आप हमें इन गलियों में घुमा भी लायी और एक संदेश भी दे दी कि -हमें भी बच्चों के लिए फिर से वैसी ही दुनिया बसानी होगी ,इस मनमोहक और सार्थक सृजन के लिए ढेरों शुभकामनयें जिज्ञासा जी
इतनी सुंदर एहसासों भरी टिप्पणी ने मन खुश कर दिया कामिनी जी, आपके इस सुंदर भावों को नमन करती हूं।
जवाब देंहटाएंऐसे में प्यारी सखी,आओ न हाथ मिलाएँ
जवाब देंहटाएंसब मिल के पेड़ लगाएँ, हरियाली हम फैलाएँ,
अपने बच्चों के लिए धरती को खूब सजाएँ, खींचें एक रेखा
सपने में आज सखी तरुवर देखा..
बहुत ही सुन्दर सार्थक संदेशपूर्ण सृजन
गीत के बोल पर फिट बैठती गुनगुनाने युक्त लाजवाब भावाभिव्यक्ति।
वाह!!!
सुधा जी,शायद आपने तर्ज वाला गीत सोहर के रूप में बचपन में सुना होगा, बड़ा ही मधुर है,असल में मुझे लोकगीतों से बड़ा लगाव है,मेरे घराने में आज भी लोकगीतो की बड़ी परंपरा है,इसलिए मैं इन्हें गुनती धुनती रहती हूं, अब तो आप सब का स्नेह मेरे इस शौक को रुचिकर बना रहा है,प्रशंसा के लिए आपका बहुत आभार एवम नमन ।
हटाएंसीमेंट कांक्रीट के जंगल में रहते हुए अपने आस पास हरे भरे ऊँचे वृक्षों की कमी का अहसास मुझे भी निरंतर सालता है।
जवाब देंहटाएंऐसे में प्यारी सखी,आओ न हाथ मिलाएँ
सब मिल के पेड़ लगाएँ, हरियाली हम फैलाएँ,
अपने बच्चों के लिए धरती को खूब सजाएँ, खींचें एक रेखा
सपने में आज सखी.......
विकास के नाम पर जिस तरह पेड़ काटे गए हैं उससे तो ये सपना बस सपना ही रह जाएगा ऐसा लगता है। फिर भी, उम्मीद पर दुनिया कायम है। बहुत सुंदर गीत, बहुत सुंदर भाव।
सटीक व्याख्या से सज्जित आपकी राय मेरे लिए प्रेरणा है मीना जी,आप सबके स्नेह और प्रतिक्रिया से मेरा ये ब्लॉग चल रहा है,वरना इसे बनाते वक्त मैं बड़ी सशंकित थी, कि लोग पढ़ेंगे भी कि नहीं पर आज मैं आपके स्नेह का हृदय से आभार व्यक्त करती हूं ।आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन।
जवाब देंहटाएंपर्यावरण और सजग रहना ...
जवाब देंहटाएंबहुत जरूरी अहि बाल्यकाल में ही इसकी महत्ता को समझाना और लागू करवाना ... हम खुद जागेंगे तो शायद समय पे समाधान हो सके ...
मेरे इस ब्लॉग आप जैसे विद्वतजनों की टिप्पणी मन को अथाह खुशी देती है,बहुत आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंआ0 जिज्ञासा जी,
जवाब देंहटाएंपठन पाठन की की श्रृंखला में आज पांच लिंको के माध्यम से आपके ब्लाग पर आना हुआ । सच कहूँ तो बहुत अच्छा लगा । आपकी कलम से निकला ये गीत दिल को छू गया । शब्दावली बहुत सुंदर इस्तेमाल की है आपने ।
'मेरे स्वपन मेरी संखियों को भाने लगे
हम सब मिल जुल के पेड़ लगाने लगे
बच्चों के लिए हरियाली फैलाने लगे,जंगल मुस्काने लगे
धरती माँ मुसकायीं,सज धज हर्शायीं जैसे सुरेखा
सपने में आज सखी......"
एक बेहतरीन पेशकश ।
सादर ।
आपकी कलम से निकली प्रतिक्रिया मुझे अभिभूत कर गई,और नव ऊर्जा दे गई । आपका स्नेह मेरे इस ब्लॉग को भी मिला,कितना आभार करूं उतना कम है ।आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंस्वप्न साकार हो आपका जिज्ञासा जी, यही शुभेच्छा है मेरी।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी,आपका बहुत बहुत आभार,आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जोशी जी,आपका बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 21 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी,जरूर आऊंगी। आपको मेरा सादर अभिवादन।
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