दूर देस मोरी बेटी गई हैं:२
पढ़न बड़ी रे किताब ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।
अट्ठरा बरस बेटी होन को आईं:२
बाबा ने ठाना बियाह ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।
रोय रोय बेटी ने घर भर दीन्हा: २
हम तौ पढ़न दूर जाब ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।
बाप न भेजा औ बाबा न भेजा: २
हम करिके भेजा बिसवास ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।
सबही के बेटी बियहि गईं ससुरे: २
हमरी पढन दूरदेस ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।
कोई मारे बोली तौ कोई ठिठोली: २
करौ जल्दी बेटी बियाह ।
सखी रे कैसे ब्याह रचाऊँ ।।
हम कही बेटी जौ पढ़ि कुछ बनिहैं: २
मिलि जैहैं सुघर दमाद ।
सखी रे फिर ब्याह रचाऊँ ।।
**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
बड़ी किताब: उच्च शिक्षा
बिसवास: विश्वास
ठिठोली: मज़ाक़
ससुरे: ससुराल
सुघर: अच्छा, पढ़ा लिखा कमाऊ
वाह ! महत्वाकांक्षी और योग्य योग्य बेटी की प्रगतिशील माँ !
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर आपकी एक टिप्पणी मेरे लोकगीत को हमेशा सफल बना देती है । आप को मेरा सादर अभिवादन ।
जवाब देंहटाएंवाह ... सुन्दर लोक गीत है ...
जवाब देंहटाएंआपका मेरे लोकगीत को सराहना मेरे लिए बहुत हर्ष का विषय है ।बहुत आभार है आपका🙏💐
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत लोकगीत!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा ।
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