फेरे का गीत ( बन्ना ,बन्नी, )

भाँवरी हो रही रघुवर की ।

भाँवरी हो रही सिया वर की ।।

पहली भाँवरी देवों को अर्पित, कृपा सदा रहे गौरीशंकर की ।

भाँवरी हो रही.....।।

दूजी भाँवरी प्रकृति को अर्पित, छाँव रहे जीवन में तरूवर की ।

भाँवरी हो रही.....।।

तीजी भाँवरी पृथ्वी को अर्पित, बखारें भरी रहें इस घर की । 

भाँवरी हो रही......।।

चौथी भाँवरी मेघों को अर्पित, फुहारें पड़ती रहें पुष्कर की ।

भाँवरी होर रही......।।

पांचवीं भाँवरी अग्नि को अर्पित,ज्योति सदा जगमग हो इस घर की ।

भाँवरी हो रही......।।

छठी भाँवरी परिजन को अर्पित, दुआयें मिलती रहे प्रियवर की । 

भाँवरी हो रही.....।।

सातवीं भाँवरी बन्ना बन्नी की,बनी रहे जोड़ी कन्या वर की ।

भाँवरी हो रही......।।

भाँवरी हो रही सिया वर की......।

**जिज्ञासा सिंह**

बन्ना ( जूता चुराई रस्म )


जूता चुराई दे दो नेग, हरियाले जीजू 

वरना जाओगे नंगे पाँव, शहज़ादे जीजू 

जूता चुराई..।


जूता तुम्हारा लाख रुपैये का 

हमको बस दे दो कुछ हज़ार, हरियाले जीजू 

जूता चुराई..।


दीदी के संग मुझे सैर कराना 

शॉपिंग भी देना करवाय, मेरे प्यारे जीजू 

जूता चुराई..।


गूची का मुझको पर्स दिलाना 

सैंडिल लुई वुतॉन, शहज़ादे जीजू 

जूता चुराई..।


हीरे का लूँगी मैं आर्मलेट 

झुमके मैं लूँगी जालीदार, मेरे प्यारे जीजू 

जूता चुराई ..।


कोई भी शर्त जो मानी न तुमने 

कर दूँगी पूरी हड़ताल, हरियाले जीजू 

धरने पे बैठूँगी आज, शहज़ादे जीजू 

जूता चुराई..।

 

जैसे हमारी माँगें हों पूरी 

जूता मैं दूँगी पकड़ाय, शहज़ादे जीजू 

जूता चुराई..।


**जिज्ञासा सिंह**

बन्नी गीत ( हल्दी )

छाई बसंत निराली । बन्नी बन्ने की होने वाली ।।


पीले पीले फ़ूलों का गजरा बनेगा ।बन्नी के जूड़े में खूब सजेगा ।।

गाए कोयल मतवाली ।बन्नी बन्ने की होने वाली ।।

आई बसंत निराली ---------


 पीले पीले सिंदूर से मांग भरेगी । माथे पर बन्नी के बिंदिया सजेगी ।।

काजल से होंगी आंखें काली ।बन्नी बन्ने की होने वाली ।।

छाई बसंत निराली ----------


पीली पीली सरसों का उबटन बनेगा ।हल्दी पड़ेगी चंदन पड़ेगा ।।

छायेगी गालों पे लाली ।बन्नी बन्ने की होने वाली ।।

छाई बसंत निराली----------


पीले-पीले सोने का गहना बनेगा।हीरा लगेगा, माणिक जड़ेगा ।।

पहनेगी बन्नी निराली।बन्नी बन्ने कि होने वाली ।।

छाई बसंत निराली---------


लाल लाल रेशम का लहंगा बनेगा ।पीले-पीले साटन का गोटा लगेगा ।।

मोती की लड़ियाँ निराली।बन्नी बन्ने कि होने वाली।।

छाई बसंत निराली----------


बन्नी के मेहंदी,महावर लगेगा ।पैरों में पायल का घुँघरू बजेगा।।

छम-छम चली है मतवाली।बन्नी बन्ने कि होने वाली।।

छाई बसंत निराली---------


**जिज्ञासा सिंह**

शादी की पचासवीं सालगिरह का गीत (उलाहना गीत )

 तर्ज़ - तार बिजली से पतरे हमारे पिया 

कभी समझे न हमको हमारे पिया

 साथ पच्चास साल गुज़ारे पिया 

मैं फूलों से घर को सजाती रही 
कोने कोने में दीपक जलाती रही 
घर में घुसते ही  जाला निहारे पिया 
हाँ निहारे पिया..हाँ निहारे पिया 
कभी समझे...............

मैं रच बिन के खाना बनाती रही 
और दस्तरख़्वान सजाती रही 
खाना खाते ही कंकड़ निकारे पिया 
हाँ निकारे पिया हाँ निकारे पिया 
कभी समझे ...............

लाख कपड़े धुले औ किए इस्तरी 
अलमारी में दिनभर सजाती रही 
एक सिकुड़न पे आँखें तरेरे पिया 
हाँ तरेरे पिया हाँ हमारे पिया 
कभी समझे................

इनके घर को मैं अपना बनाती रही 
मायके को सदा ही भुलाती रही 
मौक़ा मिलते ही सौ ताना मारे पिया 
हाँ हमारे पिया हाँ हमारे पिया 
कभी समझे .................

जो हुआ सो हुआ जो मिला सो मिला 
न कोई शीकवा न है कोई गिला 
मेरी आँखों में रहना दुलारे पिया 
हम तुम्हारे पिया तुम हमारे पिया 
कभी समझे.....................

**जिज्ञासा सिंह**

देवर भाभी गीत

तर्ज़ -नज़र लागी राजा तोरे बंगले पे 


 देवर नादान, बात बात पे मचलें - २ बार 


गई मैं बजरिया,कपड़े लेके आई 

सैंया के मोज़ा, चोरी से पहन लें  ।।देवर नादान ..


गई मैं सुनरवा ,गहने लेके आई 

अपनी अँगूठी ,हमारी से बदलें ।।देवर नादान ..


गई मैं बिसतिया, मेहंदी लेके आयी 

थोड़ी सी मेहंदी ,हथेली पे रच लें ।। देवर नादान ..


गई हलवैया, मिठाइया ले आई 

लड्डू औ पेड़ा, अकेले ही भछ लें ।।देवर नादान ..


मेरी सहेली दूर से आई 

मेरी सहेली को देख देख उछलें ।।देवर नादान ..


**जिज्ञासा सिंह**

उदास प्रियतम



धूमिल मन क्यों तुम्हारा प्रियतम 

आओ दे दूँ सहारा प्रियतम
धूमिल मन क्यूँ ? तुम्हारा प्रियतम 

भौंरा आया बैठा कली पर 
लेने रस का फुहारा प्रियतम 
धूमिल मन क्यूँ  ?...

चाँद चकोर देखो झूम रहे हैं 
संग में झूमा सितारा प्रियतम 
धूमिल मन क्यूँ  ?...

सावन में बाबुल घर जाके 
आऊँगी मैं फिर दोबारा प्रियतम             
धूमिल मन क्यूँ  ?...

मेरे बिरह में रहोगे ग़र तुम 
लगेगा मन न हमारा प्रियतम 
धूमिल मन क्यूँ  ?...

तुलसीदास तुम बन मत जाना 
होगा मज़ाक़ हमारा प्रियतम 
धूमिल मन क्यूँ  ?...

**जिज्ञासा सिंह**