अंजनी के लाला

अंजनी के लाला कमाल
हवा में उड़ जाएँ ।
कभी भूमि पर, कभी बिरछ पर
कभी नभ के उस पार, नजर हैं आएँ ॥

हमने कहा कभी मेरे घर अइयो ।
संग म अपनी सेना लइयो ॥
लड्डू, हलवा, खीर औ पूड़ी,
जो कछु खाओ बनाएँ ॥

भोर भए वे उतर परे हैं ।
घर अँगना छज्जा पै चढ़े हैं ॥
एक जैसे बानर रुप धरि 
हमको हैं सबरे डराएँ ॥

हमसे कहें तनी पानी पिलाओ ।
भूख लगी गुड़धनिया खिलाओ ॥
अम्मा कहें, ये हनुमत के बंसी,
हम झुक के सीस नवाएँ ॥

देखि रूप मैं खुब घबराऊँ ।
खीस निपोरें वे, डर-डर जाऊँ ॥
मोरी बगिया में उछल कूद रहे,
तोरि-तोरि फल सारे खाएँ ॥

बानर भी हनुमत बन आया ।
प्रेम दिया तो प्रेम ही पाया ॥
मानव बनकर स्वयं मदारी
बानर नाच नचाएँ ॥

     **जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
बिरछ: पेड़, वृक्ष
गुड़धनिया: भुना हुआ गेहूं गुड़ में पगा हुआ
बंसी: वंशज 
सीस: शीश 
तोरि: तोड़ना 

18 टिप्‍पणियां:

  1. जय हनुमान ! हम सब पर हनुमान जी की कृपा बनी रहे.

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (08-06-2022) को चर्चा मंच      "निम्बौरी अब आयीं है नीम पर"    (चर्चा अंक- 4455)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार !
      मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपका।

      हटाएं
  3. बहुत बहुत आभार आपका भारती जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर। जय श्रीराम।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुदर रचना...जय श्रीराम जिज्ञासा जी

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरे लोकगीत के ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति अतीव हर्ष दे गई ।

    जवाब देंहटाएं
  7. जय हनिमान ज्ञान गुनी सागर ...
    आपके वंदन भाव और शब्द ... बहुत कमाल ...

    जवाब देंहटाएं