अँखियाँ भरि भरि जायँ.. लोकगीत

ओ सखी मोरी अँखियाँ 
भरि भरि जायँ । 
बारे पिया की याद में,
मोरी अँखियाँ भरि भरि जायँ ॥

पिया सलोने गए नौकरिया
जब से गए नाहीं दीनी खबरिया
रात दिना मैं राह अगोरूँ
चैन लुटा है जाय ॥
ओ सखी…

प्रीति बिना मोरी सूनी नगरिया
दूर दूर नाहीं दीखें सँवरिया,
कासे कहूँ अब का की सुनूँ मैं
मति मोरी भरमाय ॥
ओ सखी…

बाली उमर की प्रीति अनोखी
मन चंचलता अँखियन सोखी
कौन कहे वो कब आवेंगे
क्षन नाहीं बीते बिताय ॥
ओ सखी...

झूला जो झूलूँ नभ तक जाए
साँझ सुनहरी है मुस्काए 
खग आए सब अपने द्वारे
प्रियतम नाहीं आयँ ॥
ओ सखी…

**जिज्ञासा सिंह**

15 टिप्‍पणियां:

  1. 'झूला जो झूलूँ, नभ तक जाए'
    वाह जिज्ञासा ! तुम्हारे इस गीत से कविवर बिहारी की विरहिणी नायिका याद आ गयी जो कि अपने पिया के वियोग में इतनी दुबली हो गयी है कि सांस लेते ही वह घड़ी के पेंडुलम जैसी झूलने लगती है.

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    1. आपकी इतनी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार आदरणीय सर 👏💐

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  2. प्रियतम की याद में विरह गीत .….. भावपूर्ण लिखा है ।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-6-22) को "सफर चल रहा है अनजाना" (चर्चा अंक-4459) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  4. विरहन के विरह गीत को बाखूबी शब्द दे दिए ...

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  5. चर्चा मंच में इस ल्कगीत की चर्चा ।बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी ।सादर नमन और सादर शुभाकामनाएं 🌹❤️

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  6. बहुत खूबसूरती से एक विरहिणी को पिरो दिया आपने इन शब्‍दों में जिज्ञासा जी...गजब...बहुत ही सुंदर रचना

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  7. लोकगीतों की मिठास और टीस !
    दोनों छलक कर कहें जी की पीर ।

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  8. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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