एक पाती लिखूँगी मैं आज..सावन गीत

   

एक पाती लिखूँगी मैं आज 

हरे हरे सावना 

मोरी अम्मा में जिया मोरा लाग 

हरे हरे सावना 


आजु सपन मैं देखी बबुल जी का घर

सब अँगन में बैठे हैं साँझ पहर

बाबा दादी बुलायें हम दौड़ी हैं आएँ

मन खोल लिखूँ हिय बात

हरे हरे सावना 


मेरे सपन में बचपन की सखियाँ दिखैं

मेरे गोद में गुड्डा  गुड़िया दिखैं

मोरे गुड्डा  गुड़िया का ब्याह रचा

मोरे द्वारे पे आई बरात 

हरे हरे सावना 


अब काव लिखूँ यहि पाती सखी

मन हर्षित है मन होत दुखी

मोरे ससुरे  नैहर की कौन सुने

आजु जियरा है मोरा उदास

हरे हरे सावना 


मैं बाबुल लिखूँ या बिरन लिखूँ

यहि सवन  आए अब चैन लिखूँ

कोई मोहे बताए काव काव लिखूँ

मोरे जियरा में सौ सौ बात 

हरे हरे सावना 


एक पाती लिखूँगी मैं आज 

हरे हरे सावना 

मोरी अम्मा में जिया मोरा लाग 

हरे हरे सावना 


**जिज्ञासा सिंह**   

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब जिज्ञासा ! हरे-हरे सावना की तुमने एडवांस बुकिंग कर दी. हमारे यहाँ तो बदरा लम्बी छुट्टी पर चले गए हैं.

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    1. हमारे यहां बदरा तो हैं पर बूंद नहीं । बस सावन से प्रार्थना करनी है । बहुत बहुत आभार आपका ।

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  2. सावन की बहार आयी तो सब लिख डालो, कुछ न छूटे
    बहुत खूब!

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