अरे रामा पियवा चले लद्दाख़,
फौज नौकरिया रे हारी ।
मैंने भेजा है अरती उतार,
फौज नौकरिया रे हारी ॥
मैं रचि रचि भोजना बनाई
और अपने पिया का खिलाई
मैं लौंगा इलायची मँगाई रामा
अरे रामा खाते पिया मोरे पान
कि होंठवा ललारी रे हारी ॥
अरे रामा पियवा चले लद्दाख़,
फौज नौकरिया रे हारी ॥
पिया वार मेमोरियल जैहैं
और फ़ोटू मोहे पठैहैं
हम फ़ोटू का सबरी मढ़ैहैं रामा
अरे रामा घर मा दैहौं टाँग
रोज रोज देखिहौं रे हारी ॥
अरे रामा पियवा चले लद्दाख़,
फौज नौकरिया रे हारी ॥
पिया धरती का बहुत मोहावें
उसै अपनी अम्मा बतावें
मैं बलि बलि जाऊँ सुन सुन रामा
अरे रामा देसवा से बहुत पियार
करेजवा वारी रे हारी ॥
अरे रामा पियवा चले लद्दाख़,
फौज नौकरिया रे हारी ॥
मैं लड़िकन का अपने बताऊँ
यहि देसवा से प्रेम सिखाऊँ
मैं सरहद की फोटु दिखाऊँ रामा
अरे रामा उन्हऊँ का भेजौं लद्धाख
देस रखवारी रे हारी ॥
अरे रामा पियवा चले लद्दाख़,
फ़ौज नौकरिया रे हारी ॥
**जिज्ञासा सिंह**
मैं लड़िकन का अपने बताऊँ
जवाब देंहटाएंयहि देसवा से प्रेम सिखाऊँ
मैं सरहद की फोटु दिखाऊँ रामा
अरे रामा उन्हऊँ का भेजौं लद्धाख
देस रखवारी रे हारी ॥
एक फौजी के जीवन की गाथा और पत्नी के मन के भाव खूबसूरती से गढ़े हैं ।
बहुत बहुत आभार दीदी । आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक बना दिया । दिल से नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंवैसे अब ज़्यादा चिंता करने की और बिरहा गाने की ज़रुरत नहीं है. फ़ौजी पिया चार साल में ही घर लौट आएँगे.
आदरणीय सर ये विरह गीत नहीं, ये एक आम भारतीय फौजी की पत्नी के मन की बात है, फौजी चार साल के लिए कौन कहे चार दिन के लिए सरहद पर रहे तो एक पत्नी, मां सभी बड़े फिक्रमंद रहते हैं।
हटाएंआपका बहुत बहुत आभार सर ।
बहुत सुंदर गीत रचा है।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका अनीता जी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2022) को चर्चा मंच "ग़ज़ल लिखने के सलीके" (चर्चा-अंक 4485) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में इस कजरी को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय सर, चर्चा मंच में रचना की चर्चा हर रचनाकार का उत्साह बढ़ाती है नव सृजन का आधार बनता है ।
जवाब देंहटाएंआपको मेरा नमन और वंदन ।
वाकई फौजी की और बाकी घर की यही बात सच्ची है , बहुत प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 10 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
कजरी गीत के "पांच लिंकों का आनन्द" में चयन पर अति हर्ष हुआ ।बहुत आभार दीदी । सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंप्रिय जिज्ञासा जी , बहुत मधुर गीत है | फौजी की पत्नी की सदैव से यही व्यथा रही | आजकल संचार साधनों से इस पीड़ा में बहुत कमी आई है फिर भी पति से दूरी को कोई सम्पन्नता या साधन कम नहीं कर सकते | हार्दिक बधाई आपको |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका प्रिय सखी ।
हटाएंलोक मन को व्यक्त करते ,लोकभाषा के यही गीत अगर ढोलक की थाप पर गाये जाने लगें तो सफल लोकगीत सिद्ध होंगे.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा मेरे लिए सौभाग्य है ।आपको नमन और वंदन आदरणीय दीदी।
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