कुआँ और बगिया बियाह.. (अवधी बियाहू)


देस देस से आवे बरतिया, 
बगिया म मोरे छहाँय ।
बाबा ने मोरे है कुअना खोदावा, 
पनिया जे पियहिं जुड़ायँ।।

कुअना औ बगिया के ब्याह रचावें बाबा, 
धूम मची है घर गाँव ।
अमवा की डारि चढ़ि बैठी कोयलिया, 
गौआ खड़ी जूड़ि छाँव ॥

कोयलरि उड़ि बैठी गौआ की सिंगिया, 
खुसुर फुसुर करे बाति ।
सुनो मोरी गुइयाँ बगिया दुआरे, 
आई कुआँ की बराति ॥

आजु रैन मैं गैहौं बियाहू, 
भइल भिनुसार सुहाग ।
मँगिया भरल मोरी बगिया के सेंदुरा, 
पाँव महावर लागि ॥

लहर लहर चले आगे आगे कुअना, 
पिछवा बगियवा हरियाय ।
दादी हमारी नीर भरहि गगरिया, 
बाबा क जियरा जुड़ाय ॥

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द - अर्थ
छहायँ - छाँव
खोदावा - खोदना
जूड़ि - ठंडी
भिनुसार - भोर, सुबह

11 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
    'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी ।
    रचना के चयन के लिए हृदयतल से धन्यवाद ।
    मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  3. रोचक और आंचलिक बातों के माध्यम से सुन्दर रचना ...
    बहुत कमाल है ...

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