बौने पौधे का दर्द (बोनसाई)

मैने गमले में बगिया लगाई
एक नाम दिया बोनसाई

पहले पेड़ से टहनी को काटा,
कई टुकड़ों में फिर उसको बांटा
गाड़ मिट्टी में कर दी सिंचाई
और नाम दिया बोनसाई

दिन बीते, महीनों बीते
उस दिन हम प्रकृति से जीते
जब टहनी में कोपल आई
और नाम दिया बोनसाई

छोटा गमला लिया थोड़ी मिट्टी भी ली
थोड़ा मौरंग लिया थोड़ी गिट्टी भी ली
फिर गमले में कलम सजाई
और नाम दिया बोनसाई

पत्ती आने लगी, शाखा भरने लगी 
कोने कोने में बगिया सजने लगी 
लेने आने लगे सौदाई 
और नाम दिया बोनसाई 

कुछ सौ में बिके कुछ हज़ार में 
वट पीपल भी बेचा बाज़ार में 
ख़ूब होने लगी फिर कमाई 
और नाम दिया बोनसाई

वट सावित्री का दिन आया 
बौने पौधे को ख़ूब सजाया 
की पूजा औ फेरी लगाई 
और नाम दिया बोनसाई 

मैंने माँगी दुआ विटप रोने लगा 
और रो करके मुझसे यूँ  कहने लगा 
क्यों की तुमने मेरी छँटाई 
और नाम दिया बोनसाई 

पहले काटा मुझे फिर बौना किया 
मुझे रहने को छोटा सा कोना दिया 
तुम्हें मुझपे तरस न आई  
और नाम दिया बोनसाई 

कितने निष्ठुर हो तुम नर नारी 
हो चलाते कुल्हाड़ी कटारी
अब साँसों की देते दुहाई 
और नाम दिया बोनसाई 

 **जिज्ञासा सिंह**

18 टिप्‍पणियां:

  1. जिज्ञासा, आम आदमी भी तो बोनसाई है.
    उसे भी कहाँ खुल कर बढ़ने और पनपने दिया जाता है?

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने सर,आपको मेरा सादर अभिवादन।

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  2. विटप का दुख भारी है
    मनुज ने की अपनी ही सांसों को
    खत्म करने की तैयारी है ।
    एक दिन आएगा जब
    ये बोनसाई ही हम पर
    लगाएंगे अट्टहास
    तब हमारी ही वंश बेल का
    हो रहा होगा ह्रास ।

    बहुत चिंतनशील रचना लिखी है । वैसे मैंने बोनसाई से लड़कियों की तुलना करते हुए कुछ लिखा था ।

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    1. आदरणीय दीदी,आपकी रचित ये पंक्तियाँ बहुत कुछ कह गईं, बोनसाई हो,या वृक्षों की कटान हो,प्रकृति का क्षरण देख कवि मन विह्वल हो ही जाता है,बहुत सुंदर भाव भरी पंक्तियाँ। आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया हमेशा नव सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है,आपको मेरा सादर नमन।

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  3. ऐसा दर्द इंसानों को भी होता है जिज्ञासा जी। पनपने का मौका हर किसी को मिलना चाहिए। मर्मस्पर्शी गीत हेतु अभिनंदन आपका।

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    1. जितेन्द्र जी,आपकी बात से सहमत हूँ,आपका बहुत बहुत आभार।

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  4. कितने निष्ठुर हो तुम नर नारी
    हो चलाते कुल्हाड़ी कटारी
    अब साँसों की देते दुहाई
    और नाम दिया बोनसाई

    वाह !! बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति जिज्ञासा जी ,सादर नमन आपको

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  5. बहुत आभार कामिनी जी,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन।

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  6. बहुत अलग अंदाज़ की रचना ... बोनसाई का दर्द और उसके बहाने कितना कुछ कहा है आपने ... हम अपनी सुविधा के लिए कितना कुछ करते हैं ...

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  7. बहुत बहुत आभार आपका दिगम्बर जी, ये अवधी भाषा में गाए जाने वाले लोकगीत के आधार पर है, आपने अपना सुंदर विचार रखा ।आपको मेरा सादर नमन।

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