रामजी बैठे सिंहासन (सोहर)

              आजु अवध बड़ी भीर तो, नौबत बाजय हो -२
सखी लौटे हैं करि बनबास, राम सीता लछिमन हो
आरति थाल सजावहिं, तव माता कौसिल्या रानी हो -२
सखी छज्जे पे चढि के निहारें, ललन कहां पहुंचे हैं हो

आवत लख लख भीर, राम नाहीं लौकइं हो -२
सखी अगवा से सब हटि जाव, ललन मुख देखहुं हो
चौदह बरस कइसे बीते, तुमहिं का बताववं हो -२
सखी दिन तो कटे कटि जाय, रैन लागे बैरन हो

आजु नगर मोरा बिहंसय, भवन मोरा हुलसय हो -२
सखि राजा दसरथ बिनु सून, हृदय मोरा व्याकुल हो
अवधनगर केरी सखियां, कौसिल्या समुझावयँ हो -२
रानी धीर धरहु मन आजु, अवध दिन लौटे हैं हो

हिरदय से लागीं सुमित्रा रानी, चरनन कैकेई रानी हो -२
दीदी मोरी मती गई बौराई, ललन बन भेजिवं हो
नीर बहावें तीनिव रानी, तव सरजू बहन लागीं हो -२
सखि सरजू ने दीन्हा वरदान, तिलक चढ़य रघुवर हो

रघुवर बैठे सिंहासन, हनुमत भुइयां गहे हो -२
सखि भरत, सत्रोहन औ लछिमन, भइया के बगल ठाढ़े हो
ऋसिमुनि तिलक लगावइं, संखधुनि बाजइ हो -२
सखि होवन लागे मंगलचार, कौसिल्या जियरा हुलसय हो

**जिज्ञासा सिंह**
 २ का मतलब -दोबारा
नौबत: वाद्ययंत्र
लौकइं: दिखना
आवत: आना
बताववं: बताना
बैरन: बैरी, दुश्मन
हुलसय: खुशी
हिरदय,जियरा: हृदय
भुइयां: ज़मीन
भेजिवं: भेजना

12 टिप्‍पणियां:

  1. रघुवर बैठे सिंहासन, हनुमत भुइयां गहे हो -२
    सखि भरत, सत्रोहन औ लछिमन, भइया के बगल ठाढ़े हो
    ऋसिमुनि तिलक लगावइं, संखधुनि बाजइ हो -२
    सखि होवन लागे मंगलचार, कौसिल्या जियरा हुलसय हो//
    श्री राम जी के सिहांसनारूढ़। होने की बेला विशेष को शब्दों में पूर्णतः जीवंत करती रचना के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं। प्रिय जिज्ञासा जी। एकदम गोस्वामी सीसी तुलसीदास जी शैली का स्मरण कराती है रचना। लोक भाषा के माधुर्य के क्या कहने!!!🙏🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी इतनी सारगर्भित और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन प्रिय सखी । आपको मेरा नमन और वंदन ।

      हटाएं
  2. वाह बहुत ही शानदार!
    लोकगीत की बात ही कुछ और होती है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मनीषा तुम्हें तो ऐसे सोहर सुनने को जरूर मिले होंगे ।
      तुम दादी को जरूर सुनाना । वो तुरंत इसका राग बता देंगी । तुम्हें मेरा ढेर सारा स्नेह और आशीष ।

      हटाएं
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-2-22) को पाश्चात्य प्रेमदिवस का रंग" (चर्चा अंक 4342)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय कामिनी जी, ये पारंपरिक सोहर को "चर्चा मंच" चर्चा का विषय बनाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन ।
    मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐👏👏

    जवाब देंहटाएं
  5. लोकभाषा के रस में सराबोर करती सुंदर रचना, जय श्रीराम!

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह ... लोक गीतों में प्रभु राम ... आनंद कई कई गुना हो गया ...

    जवाब देंहटाएं