सागर का दीवान कौन है ?

 

साधो ! मन ना कहिए जाई

तन आभूषण देखि लोभइहैं

मन देइहैं बिसराई 


कित डूबे, कित बहि उतराने

नदियाकौन से सागर छाने

केहि नौका पे बैठि चले पिय

किनकी गही कलाई 


काहे पे भरमेकब बेल्हमाने

देखे कितने ठौर ठिकाने

चढ़ि आसन नौ मन इतराने

उतरत पीर बढ़ाई 


ये जीवन सागर सम गहरा

घाट-घाट पर उनका पहरा

सागर का दीवान कौन है

देखी का परछाई ?


अब जानी मन के भरमन को

साँच-झूठबिचरत जीवन को

एक-एक पग क़ीमत डग की

देन परत उतराई 


**जिज्ञासा सिंह**

कतकी नहान (पूर्णमासी मेला)


मेला लगा है बड़ी धूम, सुनो री सखी ।

इक्का न चलबै, तांगा न चलबै ।
पैदल चलबै झूम झूम, सुनो री सखी ॥

आगे न चलबै पीछे न चलबै ।
चलबै बनाई एक झुंड, सुनो री सखी ॥

धोती भी लिहे चलौ, चुनरी भी लिहे चलौ ।
खूब नहैबे आज कुंड, सुनो री सखी ॥

सतुआ पिसान सखि, कुछ नाहीं बंधबै ।
खाबै जलेबी दही ढूँढ, सुनो री सखी ॥

सर्कस देखबै, झूलव झुलबै ।
गोदना गोदइबै सतरंग, सुनो री सखी ॥

**जिज्ञासा सिंह**

देवी गीत..

 

(चुपके चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


भोर भये रवि आने से पहले

देख नहीं मैं पाईभवानी मोरे अँगनवाँ


बाग हँसन लगेकमल खिलन लगे

कलियाँ हैं लहराईंभवानी मोरे अँगनवाँ


गोदिया बालक हँसि मुस्काने

मोहें नज़र नहीं आईं,भवानी मोरे अँगनवाँ


व्याकुल मन मोरा माँ को ढूँढ़े

दिख जाए परछाईंभवानी मोरे अँगनवाँ


मन देखाअंतर्मन देखा

हृदय बीच मुस्काईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


नेह  श्रद्धा की छवि सुंदर

नैनन बीच समाईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


चुपके-चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ


(सारे नगर मची धूम जगदंबे आइँ

गाँव-शहर मची धूम माँ दुर्गे आइँ


पेड़ पकड़िया सब हर्षाने

चलीं हवाएँ झूम-झूम जगदंबे आइँ


नदियाँ बहन लगीं कुआँ भरन लगे

बादल बरसा घूम-घूम जगदंबे आइँ


अपनी अँटरिया पे चढ़ि-चढ़ि देखूँ

जयकारे नभ रहे चूम जगदंबे आइँ


आगे-आगे मैया पीछे संसार चले

अगल-बगल चले झुंड जगदंबे आइँ


जनगण मैया की अरती उतारें

बाजन बाजे बूम-बूमजगदंबे आइँ 


सारे नगर मची धूम जगदंबे आइँ 


**जिज्ञासा सिंह**

सोहर गीत..(हास्य व्यंग)

(१) जच्चा हमारी कमाल.. लगें फुलगेंदवा।

खाय मोटानी हैं चलि नहिं पावहि
फूला है दूनो गाल.. लगें फुलगेंदवा।

पांव है सिरकी पेट है गठरी
लुढ़कें जैस फुटबाल.. लगें फुलगेंदवा।

भाव देखावें कि अम्मा बनी हैं
ठोकें रहि रहि ताल.. लगें फुलगेंदवा।

भोर भए नित नखरा देखावें
रात भर रोया है लाल .. लगें फुलगेंदवा।
जच्चा हमारी कमाल, लगें फुलगेंदवा ॥


(२) कन्हैया जी के कजरा लगइहौं नाहीं भौजी।

ई कजरा बड़े मान मनौती
नेग पहिले लेब सुनहु मोरी भौजी।

हाथ के कंगनवा और नाक के झुलनियाँ
कमर करधनियां लेब मोरी भौजी ।

नाहीं नुकुर जो करिहौ तो सुन लेव
कजर नाहीं देब तू सुनो मोरी भौजी ।

इतनी बचन सुन भौजी हंसन लगीं
पहनाय दिया कंगना औ कहें सुनो ननदी।

अगले बरस जब करिहैं जन्मदिन
करधनियाँ औ झुलनियाँ पहिनाय दैहौं ननदी ।
कन्हैया जी के कजरा लगइहौं नाहीं ननदी ॥


(३) घर गुलजार है, लल्ले की बुआ आई हैं
लाल की बधाई, बधाई बुआ लाई हैं ॥

चाँद और तारों का खडुआ गढ़ाई हैं
भैया से भतीजे, के पाँव पहनाई हैं ॥
घर गुलज़ार….

फूल और कलियों से कपड़ा कढ़ाई हैं।
लाल को झिंगोलिया औ टोपी पहनाई हैं ॥
घर गुलज़ार….

हरे हरे तोता चिरैया ले आई हैं
लाल के पलनवा में खूब सजाई हैं ॥
घर गुलज़ार….

चाँदी कजरौटा कजरवा पराई हैं
लालन की छठिया में अँखियाँ सजाई हैं ।

घर गुलज़ार है, लल्ले की बुआ आई हैं ॥

**जिज्ञासा सिंह**

बैरी बदरवा

गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ।
हमरी अटरिया पे झाँकि दिखावें
हमहीं बुनियाँ को तरसें ॥
गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥

जाय के खेतवा से मटिया लै आई
बारे कुम्हरवा से घइला गढ़ाई
हमरी तलरिया से पनिया उड़ाय लिययँ
हमहीं पनियाँ का तरसैं ॥

भोर भए घनि-घनि खुब छावयँ
दुपहरिया म टपक दिखावयँ
साँझ परे अपने घर भागयँ
नान्ह चिरइयन जैसैं ॥

बैरी बदरवा का घर से भगाय दूँगी
अपनी अंटरिया से दूर उड़ाय दूँगी
जहाँ से आए हो वहीं लवट जावो
जौने रहिया डगर से ।
 गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥

गोइंड़े- नज़दीक ही
बुनियाँ- बूँदें

**जिज्ञासा सिंह**

मेरे नैनों में श्याम बस जाना

मेरे नैनों में श्याम बस जाना,
मैं दर्पण बहाने देखूँ ॥

कारी कारी अँखियों में प्रीति बसी है, 
अधरों पे मुस्कान ऐसी सजी है,
जैसे कोयल है गाए तराना,
मैं फूलन बहाने देखूँ ॥
 
मैं राधा रानी, बनूँ तेरी रानी,
जग में अमर होगी अपनी कहानी,
कान्हा मेरे हृदय बस जाना,
मैं धड़कन बहाने देखूँ ॥

बहियाँ पकड़ कान्हा साथ चलूँगी,
बनके बसुरिया मैं रोज बजूँगी,
तुम जमुना किनारे आना,
मैं गउअन बहाने देखूँ ॥

कुंज गलिन में, सखियाँ बुलाऊँगी, 
रास रचाऊँगी, तुमको रिझाऊँगी,
तुम माखन चुराने आना
मैं ग्वालन बहाने देखूँ ॥

**जिज्ञासा सिंह**

शिव जी का भजन


शिव आए मेरे द्वारे मस्तक पर गंगा धारें                

मैं मृग छाला ले आई 

और प्रभु का आसन बिछाई       

चरण गंगा के जल से पखारे,

मस्तक पर गंगा धारे 


शीश चंदा बड़ा है निराला,

गले सोहे है सर्पन की माला 

हाथों से डमरू बजा रे

मस्तक पर गंगा धारे   


लगा धरती पे अद्भुत मेला

प्रभु वंदन की सुंदर बेला  

माह सावन का धूम मचा रे

मस्तक पर गंगा धारे  

           

ठाढे हैं सकल नर नारी

त्रिपुरारी रहे निहारी                  

बर माँगे है सीस नवा रे

मस्तक पर गंगा धारे 

**जिज्ञासा सिंह**       

चूड़ी है रंगबिरंगी

 

अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी 

चुनरिया धानी रे हारी 

मेरे माथे सजी है बिंदिया,

नथनिया न्यारी रे हारी 


मैं पहन के निकली अँगनवाँ

हैं द्वारे से आए सजनवाँ

मैं देख उन्हें शरमाई रामा

अरे रामा पुरवा चले बयार

पिया पे जाऊँ वारी रे हारी 


अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी 

चुनरिया धानी रे हारी 


मोरी चूड़ी खनखन बोले

मोरा जियरा रहि रहि डोले

मोरी निमियाँ पे बोले कोयलिया रामा

अरे रामा पपिहा गावे मल्हार

बिहंसें सखि प्यारी रे हारी 


अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी 

चुनरिया धानी रे हारी 


अब सावन झूले पड़ेंगे

हम सखियन के संग झूलेंगे

हम मारेंगे पेंग अकासी रामा

अरे रामा जाएँगे नभ के पार

लचक जाए डारी रे हारी 


अरे रामा चूड़ी है रंगबिरंगी 

चुनरिया धानी रे हारी 


**जिज्ञासा सिंह**