मेला लगा है बड़ी धूम, सुनो री सखी ।
इक्का न चलबै, तांगा न चलबै ।
पैदल चलबै झूम झूम, सुनो री सखी ॥
आगे न चलबै पीछे न चलबै ।
चलबै बनाई एक झुंड, सुनो री सखी ॥
धोती भी लिहे चलौ, चुनरी भी लिहे चलौ ।
खूब नहैबे आज कुंड, सुनो री सखी ॥
सतुआ पिसान सखि, कुछ नाहीं बंधबै ।
खाबै जलेबी दही ढूँढ, सुनो री सखी ॥
सर्कस देखबै, झूलव झुलबै ।
गोदना गोदइबै सतरंग, सुनो री सखी ॥
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत ही सुंदर, मेले की जीवंत झांकी उकेरा है आपने । अभिनंदन आदरणीया ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
जवाब देंहटाएंHey thank you!!! I was seeking for the particular information for long time. Good Luck ?
जवाब देंहटाएंप्रिय मैम आपके गीत पढ़ कर बहुत खुशी होती ! मैने देखा लोग अक्सर बाहर जाने के बाद और आधुनिकता को अपनाने के बाद अपनी क्षेत्रीय भाषा (अवधि) लोकगीत जैसी चीजों को गाने या बोलने में शर्म महसूस करने लगते हैं पर आप जिस तरह से हमारे लोकगीत को अपने शब्दों के माध्यम से लोगों से रूबरू करा रही है वाकई काबिले तारीफ है! 💜❤ 🙏
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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