हे जगत जननी जगदम्बा, हम द्वार तिहारे आए हैं ।
इस दुनिया के सारे प्राणी, जलचर, नभचर या थलचर हों,
तेरी कृपा के आगे नित, सब शीश झुकाने आए हैं ।।
चाँद-सितारे दिखते हैं पर, दिखती नहीं छवी तेरी माँ,
कर कमलों से पंचतत्व की, मूर्ति बनाकर लाए हैं ।।
इस पृथ्वी ने और प्रकृति ने, है श्रृंगार किया हाथों से,
मांग सिंधु से अमृतधारा, चरण धुलाने आए हैं ।।
सूरज चंदा की ज्योति ले, दीपों में है जोति जगाई,
शंख और मंगल भजनों संग, उंजियारा ले आए हैं ।।
यही प्रार्थना हर प्राणी की, जग में व्याप्त विपत हर लो,
भटके हुए हृदय की खातिर, राह मांगने आए हैं ।।
हे जगत जननी जगदम्बा, हम द्वाए तिहारे आए हैं ।।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुंदर आरती रची है जिज्ञासा जी आपने। आभार, अभिनंदन एवं नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपने आरती किंप्रशंसा की ,जिसके लिए आपको नमन और वंदन जितेन्द्र जी,बहुत आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भजन
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मनोज जी,आपको मेरा सादर नमन ।
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