शारदे मुझको दो वरदान ।।
कल तक मैं भूली भटकी थी,
तुमसे थी अंजान ।।
वीणा पाणिनि तेरी विद्या का,
जग करे बखान ।।
अम्बर से भी ऊँचा मन में,
है तेरा स्थान ।।
मानव ज्ञान तुम्हीं से पाते,
मिट जाता अज्ञान ।।
जिन्हें तुम्हारा मान न भावे,
वे मूरख नादान ।
ज्ञान, धैर्य माँ संयम देना,
मत देना अभिमान ।।
शारदे अब तो दो वरदान ।।
**जिज्ञासा सिंह**
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-10-21) को "पाप कहाँ तक गंगा धोये"(चर्चा अंक 4215) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
कामिनी जी,नमस्कार !
हटाएंचर्चा मंच में मेरे इस गीत के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूं, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
अति उत्तम आ0
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी आपका,नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
हटाएंज्ञान, धैर्य माँ संयम देना,
जवाब देंहटाएंमत देना अभिमान ।।
बहुत अच्छी पंक्तियां! साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
हटाएंज्ञान, धैर्य माँ संयम देना,
जवाब देंहटाएंमत देना अभिमान ।।
सफल जीवन की कुँजी माँग ली आपने माँ से...
माँ की कृपा हमेशा बनी रहे आप पर...
सारगर्भित सृजन हेतु अनंत शुभकामनाएं।
आपकी प्रशंसा को सादर नमन एवम वंदन सुधाजी । आपको नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
हटाएंज्ञान, धैर्य, माँ संयम देना, मत देना अभिमान। इससे श्रेष्ठ कोई प्रार्थना, कोई कामना हो ही नहीं सकती जिज्ञासा जी। आभार एवं अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा ने गीत को सार्थक कर दिया ,आपको नवरात्रि पर्व
जवाब देंहटाएंसपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
बहुत सुंदर लिखा है
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