तुम कुंजन में, तुम कानन में
गजानन आय बसो मेरे मन में
एक साधना मन में साधी
प्रीत की डोरी तुमसे बांधी
रहते तुम नैनन में
गजानन आय बसो..
मेरा मन कोरा कागज़ जैसा
ढाल दो प्रभुवर चाहो जैसा
मैं तो पड़ी चरणन में
गजानन आय बसो..
धूल धूसरित काया है ये
जग में व्यापी माया है ये
लिपटी जो कंठन में
गजानन आय बसो..
शीश नवाऊँ, पुष्प चढ़ाऊ
ज्ञान की ज्योति कहाँ से लाऊँ
उलझी इन प्रश्नन में
गजानन आय बसो..
तुमसे है करबद्ध प्रार्थना
छोटी सी है आज कामना
आना इस आँगन में
गजानन आय बसो..
**जिज्ञासा सिंह**
गजानन को प्रणाम 🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण आह्वान गणपति का ।
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 🙏💐
हटाएंॐ गणेशाय नमः !
जवाब देंहटाएंजय श्री गणेशाय नमः 🙏💐
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-०९-२०२१) को
'हे गजानन हे विघ्नहरण '(चर्चा अंक-४१८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी, रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन । आपको मेरी सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंजय हो गजानन की 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हरीश जी 🙏🙏
हटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंगजानन आन बसो ... गणपति तो सदेव मन में हैं और उनका आगमन तो विशेष होना ही है ... बहुत सुन्दर भक्ति रस से परिपूर्ण भावात्मक रचना ...
गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई ...
बहुत बहुत आभार दिगम्बर जी,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रार्थना..
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी।
बहुत बहुत आभार अनुराधा जी आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंThanks for the post here
जवाब देंहटाएं🙏🙏💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजानन महाराज की स्तुतिगान
जवाब देंहटाएंहार्दिक मंगलकामनाएं!
बहुत बहुत आभार आपका कविता जी ।
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