हरियाली तीज


चूनरी है हरी पहनी,माँग सेंदुर लगाया है,
मैंने आँखों में अपने आज, वो सुरमा लगाया है ।
जो साजन जी मेरे जाकर, बरेली से ले आए थे, 
औ मोती से जड़ा कंगन, वो जयपुर से मंगाए थे ।।

मेरे माथे सजा झूमर, पिया का जी लुभाता है,
कान में झूलता झाला, गीत यूँ गुनगुनाता है ।
कि प्राणों से पियारी तुम, सखी हो, सहचरी मेरी,
तुम्हारे सामने अर्पण, हमारे प्रेम की ढेरी ।।

वो ढेरी आत्मा के सूत्र को, तुमसे पिरोती है,
प्रेम में डूबकर सजनी, सजन में आज खोती है ।
तीज त्योहार रंगों से, सजाए गोरी का दामन,
सजेगी आज फिर सजनी,सजाएंगे उसे साजन ।।

बड़े अरमान से सासू ने, तोहफ़ा ये दिया मुझको, 
कहा आशीष देकर तुम,बड़ी प्यारी हो हम सबको ।
सदा गौरा के जैसे प्रेम, तुमको दें महाशंकर,
भरा आँचल रहे तेरा, ख़ुशी झूमे तेरे दर पर।। 

**जिज्ञासा सिंह**

17 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (13-08-2021) को "उस तट पर भी जा कर दिया जला आना" (चर्चा अंक- 4155) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीय मीना जी,बहुत बहुत आभार आपका और आपके स्नेह का, ऋणी हूं आपके प्रोत्साहन की...जिज्ञासा सिंह...

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  2. मन जीत लिया जिज्ञासा जी आपकी इस काव्य-रचना ने।

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    1. बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी,आपकी हर बात प्रोत्साहन का मार्ग प्रशस्त करती है,नमन आपको मेरा ।

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  3. इस श्रृंगार के बाद कुछ बचता नहीं लिखने को ।
    भावनाओं का जैसे सैलाब ही उमड़ पड़ा हो । सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीय और बहुत प्यारी दीदी को तीज की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  4. तीज का त्यौहार वैसे भी खुशियों भरा होता है ... चुहल मस्ती के साथ इसका आनंद और बढ़ जाता है ... श्रृंगार प्रमुख इस रचना ने आनंद कई गुना बाधा दिया है ... बहुत बधाई आपको ... इस गीत की ...
    आप आजकल छाई हुयी हैं सोशल मीडिया पे बहुत बधाई हो ...

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  5. आपके शब्द अभिभूत कर गए,दिगम्बर जी,आप सभी का प्रोत्साहन नव सृजन का आधार तय करता है,आपको मेरा सादर नमन।

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  6. बड़ी सुंदर रचना है। सावन तीज और श्रृंगार एक दूजे के परिपूरक हैं, स्त्रियों को तो वैसे भी सजना सँवरना बहुत पसंद होता है।

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  7. हर शब्द प्रेम और भरोसे में गुंथा हुआ, गहन और गहनतम भाव लिए हुए रचना। खूब बधाई आपको जिज्ञासा जी।

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  8. वाह! मन मोह लिया साजन जी की सजनी ने, बहुत सुंदर मोहक गीत जैसे किसी ब्याह में बैठ बन्ना बन्नी गा रहे हैं ।
    मस्ती भी श्रृंगार भी भाव भी समर्पण भी ,बहुत रसो से रसा गीत जिज्ञासा जी।
    मजा आ गया।

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  9. बहुत बहुत आभार कुसुम जी,आपकी सुन्दर टिप्पणी ने मन मोह लिया आपका हार्दिक आभार ।

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