हिंडोले में हिंडोले में
मन मोरा झूला झूले है हिंडोले रे
अंखियाँ जो मूंदू,सपना मैं देखूँ
रेशम लगीं डोरी हिंडोले रे
मन मोरा झूला...
माथे पे बिंदिया, कानों में कुंडल
नाक में नथिया डोले रे
मन मोरा झूला....
हरी हरी चुनरी,पहन के निकली
पिया मोरे कानों में बोले रे
मन मोरा झूला...
हर बगिया में देखो झूले पड़े हैं
मार पेंग नभ छूलें रे
मन मोरा झूला...
सखियाँ सहेली सब दूर खड़ी
और पिया मोरे संग संग झूले रे
मन मोरा झूला झूले है हिंडोले रे
**जिज्ञासा सिंह**
जितना मनभावन सावन होता है, उतने ही मनभावन सावन के गीत भी होते हैं जिज्ञासा जी। और ऐसे गीत प्रत्येक भाषा में अच्छे लगते हैं। और झूले चाहे सावन के हों या कोई और, उसी के साथ सुहाते हैं जो अपना मनभावन हो। बहुत अच्छा गीत रचा आपने।
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर टिप्पणी ने इस लोकगीत को सार्थक कर दिया।
जवाब देंहटाएंलोकरंग के सजा मनभावन गीत प्रिय जिज्ञासा जी | हम लोग भाग्यशाली हैं जिन्होंने सावन के झूलों का वैभव देखा है और उसके आनंद को जिया है |मनमोहक चित्र रचा है आपने अपनी रचना में | पिया का संग , सहेलियों संग उमंग सभी मौजूद हैं रचना में | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको | सावन आपके लिए खुशियाँ और शुभता लेकर आये | सस्नेह |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी, आपकी सकारात्मक और ऊर्जा प्रदान करती सुंदर टिप्पणी का हार्दिक स्वागत करती हूं,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन।
हटाएंसुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंकंक्रीट के जंगलों में अब सावन के झूले कहाँ पड़ते हैं !
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर । आपकी बात सही है, पर महिलाओं को अगर मौका मिलता है तो वो कहीं भी एक पेड़, एक डाल ढूंढ के एक दिन के लिए भी झूला डाल उसपे झूल लेती हैं,और फोटो भी खिंचा लेती हैं,क्योंकि ये उनका पीढ़ियों का शौक है😀😀🙏🙏
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा दी, हमारे तुमसर में तो सावन की तीज का अखिल भारतीय राजस्थानी मंडल का बहुत ही अच्छा कार्यक्रम होता है। झूले भी डालते है और कई स्पर्धाएं भी होती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत।
आदरणीय ज्योति जी,मेरे इस ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है, आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
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