तुमको वोट न देबै, चाहे हम नोटा पे डाल आई रे,
पिछली बार हम तुमको जितायों
कालोनी, कैट्टेल कुछू नाहीं पायों
गलियन में भरा मोरे कचरा, प्रधान जी कीचड़ में फँस गई रे ।
तुमको............।।
किसी के दुआरे पे सोलर लगा है
किसी के दुआरे खडंजा गड़ा है
हमरे दुआरे भरा गड्ढा, प्रधान जी सड़कें भी धँस गई रे ।
तुमको...........।।
अपना तुम रहो बाबू महला दुमहला
हमरी झोपड़िया में पानी चुए ला
भीग जाय मोरी चदरिया, मैं रात दिन पानी उलच रही रे ।
तुमको..........।।
तुम से कहा राशन कार्ड बनवा दो
मनरेगा में काम दिला दो
सास,ससुर दोनो बूढ़े, प्रधान जी पेंशन भी रुक गई रे ।
तुमको............।।
पड़ा चुनाव तब तुमका मैं देखी
नाहीं तो तुम हो जाओ विदेसी
ढूँढ़न कहाँ तुम्हें जाऊँ, प्रधान जी मैं तो हूँ कम पढ़ी रे ।
तुमको............।।
अबकी बार हम उसको जितावें
गांव की उन्नति जो कर के दिखावे
हर दम सुने मोरी बात, अभी तक धोखे में पड़ी रही रे ।
तुमको.............।।
गाँव का रूप बदलना होगा
स्वच्छ मोहल्ला करना होगा
तभी मिलेगा मेरा वोट,वरन मैं तो मैके को जाय रही रे
तुमको...…......।।
**जिज्ञासा सिंह**
वाह!जिज्ञासा जी ,बहुत सुंदर लोकगीत 👌
जवाब देंहटाएंब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत एवम अभिनंदन करती हूं, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय से लगा लिया है ,सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब प्रिय जिज्ञासा जी | एक देहाती नारी भी आज वोट के महत्व के लिए बहुत जागरूक हो गई है | उसे अपनी समस्याएं और प्रधान जी झूठ बयानी सब का पता है | आपकी रचना गीत के माध्यम से , विपन्नता की गर्त में धंसी उस नारी के अपने और पारिवारिक जीवन का मर्मान्तक और भयावह सच सामने रखती है , जो चहुँ ओर से विपदाओं और वेदना से घिरी है | जिसका दायित्व भ्रष्ट प्रधान का भी है जो सम्पन्नता में नयी ईंट का योगदान देता है तो झोंपड़ी की नींव की ईंटो को निकाल उसे घोर दलदल में धंसा देता है | बहुत ही मर्मान्तक गीत लिखा आपने | तभी कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण है |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी,सबसे पहले आपकी प्रशंसा का स्वागत करती हूं,आपकी इतनी व्याख्यात्मक समीक्षा पढ़कर लगा जैसे आप समाज के विभिन्न तबकों से अच्छी तरह परिचित हैं,जुड़ी हुई हैं,आखिर हम उस समाज को कैसे विस्मृत कर देते हैं,जो हमारे जीवन के बहुत सी जरूरतों का हिस्सा हैं,एक किसान कभी काला नमक चावल नहीं खाता,वो पैसे के लिए उसे बेंच देता है,और खुद कोटे के चावल से या सस्ते अनाज से पेट भरता है,जाने कितनी सरकारी योजनाओं का फायदा ग्रामीण जनता नहीं पाती है,क्योंकि उन्हें पता ही नही कि उसके लिए वो क्या करे,मेरी कामवाली को कई कोशिशों के बाद भी उज्जवला योजना के तहत मिलने वाली गैस नहीं मिली,क्योंकि प्रधान उसकी बात नही सुनता । मैने उसे कई बार भेजा, पर वही ढाक के तीन पात । थक कर वो संतोष कर गई । इसी तरह बहुत सी समस्याएं हैं ।
हटाएंआपने इस लोकगीत का मर्म समझा ,मेरे लिए इनाम जैसा है,आपको मेरा सादर नमन ,ढेरों शुभकामनाएं प्रिय सखी । समय मिले तो कविता पढ़िएगा,दूसरे ब्लॉग पर डाली है । सादर ।
प्रिय जिज्ञासा जी , मैं खुद हरियाणा के प्रगतिशील गाँव से आती हूँ हालाँकि शादी के लगभग पच्चीस सालों में मेरा अपने मायके ना के बराबर रहना हुआ | एक किसान परिवार से सम्बन्धित होने के कारण मैंने अपने खेतों में काम करने वाले मजदुर तबके का दुःख दर्द बहुत नजदीक से देखा है | मेरे गाँव के सरकारी स्कूल के पीछे की मलिन अव्यवस्थित बस्ती को मैंने सालों घंटों निहारा है | मेरी दादी कहती थी कि बेटी ! इस दुनिया में यहीं स्वर्ग है यहीं नरक !तो मैं उस मलिन बस्ती को जहाँ मैला ढोने वाले लोगों का स्थायी बसेरा था और हम कथित संभ्रांत लोगों का उस अछूत बस्ती से निकलना वर्जित था को साक्षात नरक की संज्ञा देती थी जहाँ ना पानी सुद्ध था ना बारिश में पानी की निकासी की सुव्यवस्था | पर उन्हीं बस्ती की कुछ लडकियाँ हमारे साथ पढ़ती थी जिन्हें हम सबने कभी अछूत अथवा निम्न होने का आभास नहीं होने दिया आज पढ़ लिख कर अच्छे ओहदों पर काम कर रहीं है और बचपन की दोस्ती आज भी कायम है | हाल ही में |एक आध बार उस बस्ती से निकलना हुआ तो देखकर मन को संतोष हुआ | बचपन में जिस बस्ती की तुलना मेरा अबोध मन नरक से करता था आज शिक्षा की रौशनी से जगमग हो पहले से कहीं स्वच्छ और उम्मीदों से भरी है | पिछली पीढ़ी गुजर गयी , जिनका जीवन लोगों का मैला ढोते बीता था और पशुओं के चारे के बदले जिनकी औरतों सम्मान चला जाता था |आज नयी पीढ़ी में बहुत कुछ नया है | उम्मीद करते हैं कथित भ्रष्टाचारी प्रधान भी इन शिक्षित शोषित जनों से डरेंगे और ईमानदारी के मार्ग को अपनाएंगे | तभी भारत में स्वराज्य की स्थापना होगी |आपके ब्लॉग पर रोज का फेरा है पर थोड़ा लिखने में विलम्ब हो जाता है बस | आपके सामाजिक कार्य सराहनीय हैं| यूँ ही लेखनी के साथ अपनी करुना का प्रकाश फैलाते हुए समाज हिताय कार्य करती रहिये | मेरी शुभकामनाएं|
हटाएंप्रिय रेणु जी,आपको पढ़कर बड़ा अच्छा लगा,मुझे ऐसा महसूस होता है कि हम जीवन के शुरुआती दिनों में जो कुछ देखते हैं,वो जीवन पर्यन्त हमारे व्यक्तित्व में परलक्षित होता है,और जो सोचते हैं,पूरा न सही कुछ तो वैसे बन भी जाते हैं,रेणु जी बचपन में मेरे घर में जो जमादारिन आती थी उसे हेलिन कहते थे,उसकी बेटी मेरे बराबर थी मेरा कई बार मन हो कि मैं उसके साथ खेल लूं,पर घर वालों की इजाज़त नहीं थी ,फिर भी वो मेरी दोस्त बन गई थी,उससे मुझे इतना लगाव था कि,मैने उसके लिए आज से कई साल पहले कविता लिखी थी,किसी दिन आपको पढ़ने को मिलेगी और पसंद आएगी,आपने बिलकुल सच कहा अब स्थिति काफी बदल चुकी है, गांवों में भी शिक्षा का विस्तार हो रहा है,लोग नए नए आजीविका का साधन ढूंढ कर,अपने को व्यवस्थित करने में लगे हैं,परंतु उचित मार्गदर्शन के अभाव में,एवम भ्रष्टाचार की वजह से कही भी समुचित विकास दिखाई नही देता,अधूरापन हर जगह दिखाई देता है, फिलहाल स्थिति बदली है,और बदल रही है,आगे और अच्छा होने की उम्मीद है, हां मैं भी कोई ज्यादा सामाजिक कार्य नहीं कर पाती, अभी घर परिवार की बहुत सी जिम्मेदारियां है, पर अपने आसपास के लोगो को खुश रखने की कोशिश रहती है । निरंतर आपके स्नेह की हृदयतल से आभारी हूं,आपको मेरी सप्रेम शुभकामनाएं, आदर सहित जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंतभी मिलेगा मेरा वोट,वरन मैं तो मैके को जाय रही रे कितनी मासूम सी धमकी है
जवाब देंहटाएंजी रेणु जी,एक ग्रामीण,अनपढ़ स्त्री और क्या धमकी दे सकती है? सिवाय मायके जाने के । वो भी एक झूठी ही धमकी समझिए । उसका गरीब बाप भी तो उसे ज्यादा दिन नहीं रख सकता । ले दे के उसे गरीबी में ही रहना है । आपकी सुंदर समझ को नमन है ।आपके स्नेह की अभिलाषा में आपकी सखी जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी , जब भी मैं किसी ऐसी महिला से मिलती हूँ [हालाँकि मेरा जीवन घर तक ही सीमित है मैं कभी कोई समाज सेवा नहींकर पाई] तो यही कहती हूँ , उत्थान की सीढ़ी सिर्फ और सिर्फ शिक्षा है | तुम अनपढ़ हो अपनी बेटी बहु को पढ़ाओ| सिश्का स ही समाज और व्यक्ति दोनों का सर्वांगीण विकास संभव है | शब्द चित्र में सब कुछ कहने की आपकी महारत प्रशंसनीय है | ये बात दूर तक जाती है | सस्नेह |
हटाएंसिश्का स -- कृपया शिक्षा से पढ़ें
हटाएंप्रिय रेणु जी, बिलकुल सही कहा आपने,शिक्षा से ही सर्वांगीण विकास संभव है,जो कि सभी के लिए सबसे सुगम मार्ग है,लोग शिक्षित भी हो रहे है और शिक्षित लोग ही देश को आगे ले जा सकते हैं,इन्ही आशाओं के साथ जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंलो जी , अब तो नेता को भी मायके की धमकी ....लगता है उनको एक ही धमकी देनी आती और ये सबसे कारगर धमकी लगती है ....
जवाब देंहटाएंनेता जी से सारी शिकायतें बड़ी वाजिब हैं .....ज़बरदस्त ....गीत के रूप में गाँव कि समस्याओं और नेताओं के करतब गिना दिए ...
जी सही कहा दीदी आपने, आपका बहुत बहुत आभार एवम नमन, मैंने आपका लिखा कही पढ़ा था कि आप कभी गांव नहीं गईं,इसी लिए मैं आपको अक्सर गांव की सैर करवा देती हूं, कोशिश रहती है कि आप मेरे मन के गांव आती रहें और अपना स्नेह जताती रहें,और मेरा मनोबल बढ़ता रहे.. जिज्ञासा सिंह।
हटाएंजिज्ञासा जी आप ने लोकगीत के माध्यम से एक गांव का असली रेखा चित्र खींच कर प्रत्याशियों के गाल पर तमाचा ही जड़ दिया। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति लोकगीत के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर आपकी टिप्पणी मेरे लिए इनाम स्वरूप है,क्योंकि आपके पास ऐसे अनुभवों का खजाना होगा,ऐसा मुझे विश्वास है, आपको मैने जब भी पढ़ा तो ऐसा ही लगा,सफाई स्नेह बनाए रखें,तो लोकगीतों का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा । मेरा ब्लॉग "जिज्ञासा की जिज्ञासा" पर समय मिले तो कृपया भ्रमण करें।आपको नववर्ष तथा नवरात्रि के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई.. जिज्ञासा
जवाब देंहटाएंजबरदस्त रचना, बहुत ही सुंदर लोक गीत, बधाई हो
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीदी आपका,मेरी तरफ से आपको नववर्ष तथा नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई.... जिज्ञासा सिंह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, तुम्हें और तुम्हारे परिवार के सभी लोगों को भी नूतन बर्ष की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं🌹🌹🙏🙏
जवाब देंहटाएंदेश व समाज की व्यथा कथा को कुछ शब्दों में बखूबी पिरोया है आपने। छल तो होता ही रहा है और आगे भी होंगे, पर अपने अधिकारों हेतु हम कुछ न कहें, यह कैसे हो।
जवाब देंहटाएंपर, कर्तव्यों का क्या? यह समाज अगर अपने कर्तव्यों को भली भांति समझे तो अधिकारों के लिए भी शायद रोना न परे!
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया जिज्ञासा जी।
आपकी लेखन विधाओं का प्रेमी....
जी बिलकुल सही कहा आपने,पुरषोत्तम जी, हमें अपने अधिकारों के प्रति भी सजग रहना चाहिए,आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंBahut sahi aur behad sarahaniya rachana,
जवाब देंहटाएंSadar Naman, Abhar!
बहुत आभार आपका । आपकी प्रशंसा को नमन है।
जवाब देंहटाएंव्यंग्यात्मक शैली का बहुत सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंकिन्तु तुम अंतिम पंक्तियों में भटक गईं और खड़ी बोली में आ गईं.
गाँव को रूप बदले का पड़िहे
स्वच्छ मोहल्ला करिबे को पड़िहे
वोट हमार तभई तुम पइहो वरं हमें तुम मैके पइहो
तुमको...…......।।
बेहतर होता.
वरं को वरन पढ़ना
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