चैती लोकगीत


(१) सइयाँ खिसियाने..

भितर डेवढ़िया सासू सोइ गईं रामा, सइयाँ खिसियाने॥

खन खन बोले मोरे हाथे के कंगनवाँ, पाँव सजी बोले पैजनियाँ हो रामा, सइयाँ खिसियाने ॥

कंगना उतार मैं धइली बरोठे, पैजनियाँ फेंकली ओसरवा हो रामा, सइयाँ खिसियाने ॥

काव कहहुँ अइसी बैरन सासू, आजु नाहीं सुतली कोठरिया हो रामा, सइयाँ खिसियाने।

आधी रात बीती पिया रहिया अगोरें, सासू नन्द करें अठखेलिया हो रामा, सइयाँ खिसियाने॥

(२) भरल कचहरी..

अचकन म चिपकी टिकुलिया हो रामा, भरल कचहरी॥

सइयाँ का चले है मुक़दमा हो रामा, भरल कचहरी॥

जात कचहरी पिया हिया से लगावें, मथवा से गिरि गय टिकुलिया हो रामा, भरल कचहरी।

चिपकी टिकुलिया सब केउ निहारे, सइयाँ की उतरी सुरतिया हो रामा, भरल कचहरी॥

काढ़ि-काढ़ि खींस हकिम मुस्कावे, हँसि-हँसि जाय सिपहिया हो रामा, भरल कचहरी।

साँझ भए पिया घर जब लौटे, हम्पे तरेरे गोल अँखियाँ हो रामा, भरल कचहरी।

जिज्ञासा सिंह

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! सखी जिज्ञासा ,बहुत सुन्दर गीत 👌

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