मोरी धनियाँ मेला म हेराय गईं ।
अगवा से हम चलैं पीछे मोरी धनियाँ,
न जाने कैसे डगरिया भुलाय गईं ।
पहली बार धना घर से हैं निकरी,
भीर देखते बहुत घबराय गईं ।
नदिया नहरिया धनै बहु भावे
बीच गंगा म डुबकी लगाय गईं ।
लड्डन हलवैया बनावे मिठैया
रसही जलेबी देखि ललचाय गईं ।
खस्ता बसाता उन्हें बहु भावे,
एक दर्जन गपागप खाय गईं ।
सुरमा दुकनियाँ क रहि रहि ताकें,
दाम सुनते बहुत खिसियाय गईं ।
लड़िकन खिलौना सबहि कुछ बेसहैं,
लै के पिपिहिरी वे पीं पीं बजाय गईं ।l
**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
धना, धनियाँ: पत्नी
हेराय: खोना, बिछुड़ना
बेसहैं: खरीदना
पिपहिरी: बांसुरी, सींटी के जैसा वाद्ययंत्र
रसही: रसीली
लड़िकन: बच्चे
बसाता: गोलगप्पे
वाह बहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका अभिलाषा जी, आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
(23-11-21) को बुनियाद की ईंटें दिखायी तो नहीं जाती"( चर्चा अंक 4257) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी, चर्चा मंच पर इस लोकगीत के चर्चा के लिए आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन । आपको और चर्चा मंच को हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंजवाब देंहटाएं
बहुत ही सुंदर! पढ़कर लबों पर मुस्कान खुद बहुत खुद आ गयी 😊
जवाब देंहटाएंप्रिय मनीषा ये पिक्चर सरयू मेला की है,अपनी दादी का गीत सुनकर हँसी तो आएगी ही । ये सच घटना पर आधारित गीत है, अपनी तरफ तो ऐसे लोग आज भी मिलते हैं,जिनकी पत्नियाँ आज भी मेला में खो जाती हैं। मैं बड़े आनंद से सुनती हूं ऐसी कहानियां । तुम्हें बहुत सारा स्नेह 😀😀
हटाएंअरे वाह!
हटाएंसरयू की कहानी है!
मैम हम लोग भी जब मेले में जाते थे तो गोदना जरूर गुदवाते थे पर मेंहदी वाला जो एक दिन में ही छूट जाया करता था!बचाए रखने के लिए हम लोग एक ही हाथ से काम करते थे 😀
आखिरी बार मैं 2019 में पसका मेला गई थी तब मेरी छोटी बहन थोड़ी देर के लिए हमसे बिछड़ गई थी😀😀उसके बाद से कभी किसी भी मेले में नहीं गयी पर तब उतना मजा नहीं आया जितना बचपन पैदल दौड़ते हुए जाने में आता था!
सुंदर मनभावन गीत
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंसुंदर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधनिया को खोजने वाले उसे चूड़ी वाले की दुकान पर तो जा कर देखें !
😀😀😀😀
हटाएंअरे क्या बात है ?
हटाएंमैं ये चूड़ी वाले को कैसे भूल गई ? चूड़ी,और गोदना गोदवाना तो मेलहरु औरतों का पहला शौक है, मैंने दस बरस की उम्र में ये सब देखा है लेकिन आज तक नहीं भूली हूं । और न भूल पाऊंगी गोदना गोदवाने का दृश्य 😂😂😂😂
😀😀 बहुत बढ़िया प्रिय जिज्ञासा जी। ये रसीला और मनमोहक गीत पढ़कर बहुत अच्छा लगा। लोकजीवन के सरल लोगों की ये सरस अभिव्यक्ति आत्म-आनंद की द्योतक है। धनिया के विलक्षण गुण तो यही कहते हैं कि भीड़ को देखकर नहीं, ना ही गंगा मैया में डुबकी लगाने से, धनियां तो छिपी है जलेबी, गोलगप्पे खाकर पतिदेव का बजट बढ़ाने से ।😀😀😀😀 हार्दिक शुभकामनाएं इस रोचक सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको ❤️❤️🌷🌷
जवाब देंहटाएंरसभरी और लाज़वाब!!!
जवाब देंहटाएंतमाम जिम्मेदारियों के बीच,इस मेलहरू गीत को समय देने के लिए आपका जितना शुक्रिया करूं कम है,आपको मेरा नमन 😀🙏
जवाब देंहटाएंलोक गीतों का अपना ही तिलिस्म है ...
जवाब देंहटाएंबांधे रखता है हर पंक्ति में ... आंचलिक महक सहज मन को खींच लेती है ...
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर, आपकी प्रशंसा ने रचना को सार्थक बना दिया । सादर नमन🙏💐
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