गंगा पूजन (लोकगीत)


सखी री मैं तो पूजन जाऊँ गंगा

हाथ में मेरे कलश विराजे
चुड़ियाँ छन छन बाँह में बाजे
माथे पे बिंदिया लाल चुनरिया 
गोटा लगा है सतरंगा
सखी....

सब कहें गंगा दूर बसी हैं
पर मोरे हिरदय आय लगी हैं
मातु पिता सम मुझको प्यारी 
करतीं मन मोरा चंगा
सखी....

आरती बंदन पूजन करती 
श्रद्धा भक्ति अर्पन करती 
सूरज की किरणों की छवि से 
बूंद बूंद है रंगा
सखी....

जीवन मृत्यु सभी कुछ जल से
गंगा के आशीष औ फल से
अपना जीवन स्वर्ग बनाऊँ 
अब तक था बेरंगा
सखी....

**जिज्ञासा सिंह**

12 टिप्‍पणियां:

  1. गंगा मैया के प्रति भक्तिभाव से ओतप्रोत सुंदर रचना !

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    1. बहुत बहुत आभार आपका,आपको ब्लॉग पर देख बहुत सुखद अनुभूति हुई । आपको मेरा नमन और वंदन ।

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  2. जीवन मृत्यु सभी कुछ जल से
    गंगा के आशीष औ फल से
    अपना जीवन स्वर्ग बनाऊँ
    अब तक था बेरंगा
    सखी....बहुत सुंदर गंगा मैया का गीत ।दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका,आपको ब्लॉग पर देख बहुत सुखद अनुभूति हुई । आपको मेरा नमन और वंदन ।

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  3. बहुत सुंदर, सचमुच बहुत ही सुंदर भक्ति-गीत रचा आपने जिज्ञासा जी। सब कहें गंगा दूर बसी हैं पर मोरे हिरदय आय लगी हैं। मन जीत लिया इन पंक्तियों ने।

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
    (9-11-21) को बहुत अनोखे ढंग"(चर्चा अंक 4242) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  5. सुंदर भक्ति और विश्वास से परिपूर्ण आस्था का गीत जिज्ञासा जी।
    अनंत शुभकामनाएं ,छठ्ठ माता और सूर्य देव सदा जीवन में खुशहाली भरते रहें।
    सस्नेह।

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  6. बहुत बहुत आभार आपका कुसुम जी । आपके आगमन ने मेरे इस ब्लॉग की शोभा बढ़ा दी । आपको भी छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।

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  7. गंगा मैया की सुंदर और भावपूर्ण अभ्यर्थना प्रिय जिज्ञासा जी। सखियों की गंगा से इतनी आस्था न होती तो शायद हर की पैड़ी जैसे घाट कच्चे ही रह जाते!

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  8. वाह! कितनी सुंदर विवेचना, आपकी परिष्कृत सोच को नमन ।

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