मेरे घर आना, तू प्यारी गौरैया ।
शोर मचाना, तू प्यारी गौरैया ।।
तोता को लाना, मैना को लाना
बुलबुल को लाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
पेड़ लगाऊँगी, पकड़िया लगाऊँगी
घोसला बनाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
दाना भी दूँगी, तुम्हें पानी भी दूँगी
ख़ूब नहाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
ख़ूब बड़ा सा है, मोरा अँगनवाँ
फुदक फुदक जाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
मोरे अंगनवाँ में झूला पड़ा है
झूलझूल जाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
शाम सवेरे मैं, तुमको निहारूँगी
हँस बतियाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
रोज़ सुबह तुम, मुझको जगाना
गाके मधुर गाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
पर्यावरण की तुम हो सहेली
रूठ नहीं जाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर...
**जिज्ञासा सिंह**
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०३-२०२१) को 'मनमोहन'(चर्चा अंक- ४०११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
सादर नमस्कार।
हटाएंकृपया १९ को २० पढ़े।
अनीता जी, मेरे इस ब्लॉग की रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दीदी,मेरे इस ब्लॉग का गीत "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा होगी,ये मेरे लिए बहुत ही सुखद अनुभूति का क्षण है,सादर नमन एवम सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंवाह!!! बहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार विश्वमोहन जी,आपको मेरा सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंआहा..बहुत सुंदर सरल,सहज और मधुर लोकगीत,
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी गौरेया की इतनी मनोहारी किलकारी सुनकर मन प्रसन्न हुआ।
आपकी रचनात्मक प्रशंसनीय है।
शुभकामनाएं
सादर।
प्रिय श्वेता जी,ढोलक पर जब गया जाएगा तो बड़ा मधुर लगेगा, गौरैया रानी तर जाएंगी सुनकर, है न । आपकी प्यारी प्रशंसा को नमन है ।
हटाएं*गया/गाया
हटाएंबहुत सुंदर लोकगीत,जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय ज्योति जी,आपको सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, मधुर गीत लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ज्योति दीदी, आपको मेरा अभिवादन ।
हटाएंमधुर गीत !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी देखकर मन खुश हो गया,आपको नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंप्यारा लोकगीत । सुंदर भावों का संयोजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी, आपको सादर नमन एवम ।
हटाएंबहुत सुन्दर 👌
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है एवम आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूं,स्नेह बनाए रखें,इसी आशा में जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंवाह!कितना प्यारा लोकगीत।
जवाब देंहटाएंसौंधी सी महक और दिल में अह्लाद जगाती मनभावन अभिव्यक्ति।
चिरैया दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया कुसुम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन है ।
हटाएंअति सुंदर आदरणीय जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूं ।
हटाएंसंवेदना से भरपूर कविता |हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंबेहद प्यारा गीत, आनन्द आ गया जिज्ञासा जी
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार प्रिय कामिनी जी, आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूं ।
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही बहुत प्यारा गीत है यह । बालगोपालों को सिखाने चाहिए हमें ऐसे गीत ताकि वे पशुपक्षियों से प्रेम करना सीखें ।
जवाब देंहटाएंजी,सही कहा आपने,आपकी विशेष प्रतिक्रिया मन को छू गई । ब्लॉग पर सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना...। इसे मैं अपनी मासिक पत्रिका 'प्रकृति दर्शन' में प्रकाशित करना चाहता हूं...। आप चाहें तो ईमेल editorpd17@gmail.com पर प्रेषित कर सकते हैं...। आप पत्रिका देखना चाहें तो आपको व्हाट्सएप पर कुछ अंक भेजे जि सकते हैं...।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार संदीप जी, मैंने अपनी कविता प्रेषित कर दी थी, मैंने पत्रिका के अंश देखे हैं,थोड़ी व्यस्तता होने के कारण अभी सही से नहीं देख पायी हूँ, बाद में ज़रूर पढ़ूँगी।सादर शुभकामनाएँ ।
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