एक गृहणी की प्रतिज्ञा (महिला दिवस )

घर की मैं महारानी सुनो री सखी
अपने मन की रानी सुनो री सखी

पौधे लगाऊंगी फूल खिलाऊँगी
सब्जी उगाऊँगी फल भी उगाऊँगी
गमले में करूं बागबानी सुनो री सखी

आस पड़ोस को साफ कराऊंगी
सड़क किनारे मैं पेड़ लगवाऊंगी
करूंगी खुद निगरानी सुनो री सखी

योग करूंगी व्यायाम करूंगी
सेहत का सबके ध्यान रखूंगी
बीमारी घर से भगानी सुनो री सखी

कामवाली का अपने ध्यान रखूंगी
उसकी जरूरत पूरी करूंगी
काम हमारे वही आनी सुनो री सखी

बच्चों को अपना गौरव बनाऊंगी
शिक्षा दिलाऊँ, संस्कार सिखाऊँगी
अच्छी माँ जाऊं पहचानी सुनो री सखी

अपने लिए मैं वक्त निकालूंगी
मन के अधूरे सारे काम करूंगी
खुद को न अब तक जानी सुनो री सखी

घर को अपने व्यवस्थित रखूंगी
फिजूलखर्ची न बिल्कुल करूंगी
अपने ही मन में ठानी सुनो री सखी

सारी प्रतिज्ञा मैं पूरी करूंगी
शौक श्रृंगार बन ठन के रहूंगी
अब न करूंगी आनाकानी सुनो री सखी

अपने मन की रानी सुनो री सखी
घर की हूं महारानी सुनो री सखी....

        **जिज्ञासा सिंह**

24 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०३-२०२१) को 'निसर्ग महा दानी'(चर्चा अंक- ३९९७) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  2. प्रिय अनीता जी, मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं..मेरे इस ब्लॉग पर आने के लिए आपका जितना आभार करूं कम है ..सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..

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  3. बहुत ही सुंदर कविता, सखी से सांझा करती हुई मन की बात ,साथ ही ये भी खुशी से बताते हुए कि मै अपने घर की रानी महारानी हूँ ,बहुत खूब, महिला दिवस की बहुत बहुत बधाई हो आपको इस प्यारी सी रचना के साथ जिज्ञासा जी ,सादर नमन

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  4. आपकी मनभावन प्रशंसा से अभिभूत हूं..ये मेरे लोकगीतों का ब्लॉग है ..आपसे अनुरोध है,स्नेह बनाए रखें..महिला दिवस की बधाई एवम शुभकामनाएं..सादर नमन..

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  5. मन की अभिलाषाओं को बखूबी बयां किया है ... अपने लिए वक़्त निकालने कि प्रतिज्ञा भी बहुत बड़ी प्रतिज्ञा है ..सबके लिए वक़्त होता है गृहणी के पास सिवाय अपने .. बहुत सार्थक और अच्छी प्रस्तुति .

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    1. दीदी आपके एक एक शब्द से प्रेरणा मिलती है, इस ब्लॉग पर आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूँ..सादर अभिवादन एवं शुभकामनाएँ..

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  6. यदि आज के दौर में आपके लिखे एक-एक शब्द का मनन कर सभी सखियाँ ये प्रतिज्ञा ले ले तो धरती पर स्वर्ग की पुनः वापसी हो जाएगी,मैं भी आपके प्रतिज्ञा की सहभागी बनुँगी औरों को भी प्रेरित करुँगी,आपकी अनुमति हो तो आपकी इस रचना को मैं अपने फेसबुक पर साझा करूँ,सादर नमन

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    1. मनोभाव को बखूबी समझना अपने आप में एक खूबसूरत हुनर होता है, प्रिय कामिनी जी आपने मेरी भावना को भी समझा और सराहा भी..आपको हृदय से नमन है..अगर इस गीत से एक महिला भी प्रेरित हो जाय तो लेखन सफल है..बिल्कुल आप इसे साझा कर सकती हूँ.आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ..

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  7. अपने मन की रानी सुनो री सखी
    घर की हूं महारानी सुनो री सखी.... वाहहह बेहतरीन रचना जिज्ञासा जी।

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  8. बहुत बहुत आभार आदरणीया अनुराधा दीदी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय से नमन करती हूं..सादर..

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  9. अपने मन की रानी सुनो री सखी

    घर की हूं महारानी सुनो री सखी....

    बहुत सुन्दर

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  10. आपका बहुत बहुत आभार मनोज जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को सादर नमन है..

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  11. बहुत सुंदर सृजन जिज्ञासा जी समस्त कर्तव्यों का निर्वहन कर अपने आप से भी वादा सुंदर प्रतिज्ञा।
    महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।

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  12. सुप्रभात , कुसुम जी आज के दिन की,यूँ कहें हर एक दिन की आपको ढेरों शुभकामनाएँ..जी ये लोकगीत मेरे मन के भाव हैं..आपकी सुंदर प्रतिज्ञा से मन प्रफुल्लित है..सादर नमन.."जिज्ञासा की जिज्ञासा "पर एक कविता डाली है आशा है,आप ज़रूर देखेंगी, आपके स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह..

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  13. बहुत सुंदर जिज्ञासा जी ! मन मोह गयी आपकी रचना | समर्पित गृहणी के मन के ये उन्मुक्त उदगार बहुत ही सहजता से मन को आनंदित करते हैं | आखिर इतनी समर्पित , सुघड़ गृहस्वामिनी जिस घर -आँगन की शोभा होगी वह स्वर्ग से कहाँ कम होगा ?समस्त दायित्व निभाकर अपने लिए समय निकालने की प्रतिज्ञा नारी के व्यक्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करती है | एक अलग अंदाज की हँसती-गाती रचना के लिए आप विशेष सराहना की पात्र हैं | यूँ ही खुश रहिये | ढेरों शुभकामनाएं और प्यार |

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  14. इतनी विनम्र और स्नेहसिक्त टिप्पणी से मन आनंदित हो गया..आपका जितना आभार करूं कम है..रेणु जी लोकगीतों में मेरी रुचि है.. अपने बनाए लोकगीत गाने का शौक है .. बस अप लोगो का प्रेम रहा तो ऐसे ही लिखती रहूंगी..सादर नमन एवम शुभकामनाएं..

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  15. बहुत सुंदर गीत है यह जिज्ञासा जी ।

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  16. बहुत बहुत शुक्रिया जितेन्द्र जी..सादर नमन..

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  17. अद्भुत कविता ।बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं

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  18. आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूं..सादर नमन..

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  19. जिज्ञासा, नारी-उत्थान के बहाने तुमने तो नारी-कर्तव्य की पूरी फ़ेहरिस्त गिना दी.

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  20. जी, सर आपने सही कहा,कभी कभी हम नारियां अपने कुछ प्राथमिक कर्तव्यों को नजरंदाज कर देती हैं,जो कि हमें संपन्नता के साथ साथ खुशी भी देते हैं, मेरा बड़ा छोटा सा प्रयास है, उन्हें याद दिलाने का,आपको मेरा प्रणाम ।

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  21. बहुत बहुत आभार उषा किरण जी,बिलकुल सच 😀👍...

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