अवधी लोकगीतों में सुभाष बाबू

मेरी चाचीदादी द्वारा रचित लोकगीत, महान देशभक्त आदरणीय नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन पर पेश कर रही हूँ..एक गाँव की भोली भाली महिला की सच्ची श्रद्धांजलि..

बाबू सुभाषचंद्र बोस हमारी गलियों से निकल गए 

बागों में आए बगीचों में आए 
कर के वो मलिया से बात 
मलिनिया से छुप के निकल गए 
बाबू...

कुअना पे आए जगतिया पे आए 
कर के वो महरा से बात 
महरिनिया से बच के निकल गए 
बाबू...

तालों पे आए नहरिया पे आए 
करके वो धोबी से बात 
धोबिनिया से छुप के निकल गए 
बाबू...

महलों में आए दुमहलों में आए 
कर के वो राजा से बात 
औ रानी से बच के निकल गए 
बाबू...

**जिज्ञासा सिंह**

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (24-01-2021) को   "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर"  (चर्चा अंक-3949)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! ब्लॉग पर आप जैसे विद्वज्जन के निरंतर स्नेह से प्रोत्साहन मिलता है और मेरी रचनाओं को एक मंच..इस
    हौसले तथा सहयोग का हृदय से अभिनंदन करती हूँ..नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन की शुभकामनाएं सहित..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..

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  3. पुराने गीतों, लोकगीतों का कोई सानी नहीं

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    1. जी बिल्कुल सच, गगन जी आपका बहुत बहुत आभार..

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    2. उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हृदय से आपका बहुत-बहुत आभार गगन जी,सादर नमन..

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  4. वाह!! अद्भुत लोकगीत । सरस और मधुर ।

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    1. आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया का स्वागत करती हूँ आदरणीय मीना जी..सादर नमन..

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  5. बहुत बहुत आभार अनुराधा जी,सादर नमन ..

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  6. बहुत ख़ूब जिज्ञासा जी । सुभाष बाबू को विलक्षण श्रद्धांजलि दी है आपने ।

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी.. सादर नमन..

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  8. प्रिय जिज्ञासा जी, आदरणीया चाचीदादी द्वारा रचित ये गीत मुझे अपने गाँव गली की गलियों मेंप्रचलित कई रोमांचक कहानियों का स्मरण करा गया। सुभाष चन्द्र बोस एक किंवदंती बन चुके हैं। हमारे यहाँ भी एक दो ऐसे गीत गाये जाते हैं जिनमें नेता जी के पराक्रम का वर्णन है। गाँव की भोली माँ की सच्ची श्र्द्धाञ्जलि है ये गीत जिसमें नेता जी का बतरसिया रूप वर्णित है। सच में ये भोलेपन मानो मन भिगो देता है। निश्चित ही ऐसी चाची दादी के मधुर सानिध्य में आपके भीतर साहित्य प्रेम का संस्कार पोषित किया । हार्दिक शुभकामनाएं आपको लोकरंग रंगे इस मधुर को ब्लॉग पर सजाने के लिए 🌹🌹🙏🌷🌷💐💐

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  9. जी सही, पहचाना आपने नेताजी को, इसके अलावा नेताजी हर स्त्री से
    बच के निकल जाते थे ये स्त्री मन के सुलभ स्वभाव का परिचय देता है.. वैसे मेरी दादी लोग भी कुछ कम नहीं थीं, वे इन गानों पे झूम के लोकनृत्य भी कर लेती थीं..आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहवर्धन करती है निरंतर प्रेरणा की अभिलाषा में..जिज्ञासा सिंह..

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  10. जिज्ञासा, मेरी माँ अपने बचपन का एक गीत हम बच्चों को सुनाती थीं -
    नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,
    हमारी गली से निकले --

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  11. जी, सर मैने भी अपनी दादी,चाची के मुख से देशभक्ति के बहुत लोकगीत सुने है,जैसे
    ......गांधी के चश्मा लगइबे। सनीमा हम देखन को जइबे ।।
    ..चूंकि मुझे इन बातों का बचपन से शौक था, इसलिए स्मृतियों में बसे हैं ये गाने

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