मेला लगा है बड़ी धूम, सुनो री सखी ।
इक्का न चलबै, तांगा न चलबै ।
पैदल चलबै झूम झूम, सुनो री सखी ॥
आगे न चलबै पीछे न चलबै ।
चलबै बनाई एक झुंड, सुनो री सखी ॥
धोती भी लिहे चलौ, चुनरी भी लिहे चलौ ।
खूब नहैबे आज कुंड, सुनो री सखी ॥
सतुआ पिसान सखि, कुछ नाहीं बंधबै ।
खाबै जलेबी दही ढूँढ, सुनो री सखी ॥
सर्कस देखबै, झूलव झुलबै ।
गोदना गोदइबै सतरंग, सुनो री सखी ॥
**जिज्ञासा सिंह**