हरे हरे सावना ।
मोरी अम्मा में जिया मोरा लाग
हरे हरे सावना ॥
आजु सपन मैं देखी बबुल जी का घर
सब अँगन में बैठे हैं साँझ पहर
बाबा दादी बुलायें हम दौड़ी हैं आएँ
मन खोल लिखूँ हिय बात
हरे हरे सावना ॥
मेरे सपन में बचपन की सखियाँ दिखैं
मेरे गोद में गुड्डा औ गुड़िया दिखैं
मोरे गुड्डा औ गुड़िया का ब्याह रचा
मोरे द्वारे पे आई बरात
हरे हरे सावना ॥
अब काव लिखूँ यहि पाती सखी
मन हर्षित है मन होत दुखी
मोरे ससुरे म नैहर की कौन सुने
आजु जियरा है मोरा उदास
हरे हरे सावना ॥
मैं बाबुल लिखूँ या बिरन लिखूँ
यहि सवन न आए अब चैन लिखूँ
कोई मोहे बताए काव काव लिखूँ
मोरे जियरा में सौ सौ बात
हरे हरे सावना ॥
एक पाती लिखूँगी मैं आज
हरे हरे सावना ।
मोरी अम्मा में जिया मोरा लाग
हरे हरे सावना ॥
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुन्दर ❤️🌻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी ।
हटाएंबहुत ख़ूब जिज्ञासा ! हरे-हरे सावना की तुमने एडवांस बुकिंग कर दी. हमारे यहाँ तो बदरा लम्बी छुट्टी पर चले गए हैं.
जवाब देंहटाएंहमारे यहां बदरा तो हैं पर बूंद नहीं । बस सावन से प्रार्थना करनी है । बहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंखूबसूरत गीत👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी ।
हटाएंसावन की बहार आयी तो सब लिख डालो, कुछ न छूटे
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
बहुत आभार कविता जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सावन गीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी।
हटाएंबढ़िया लोकगीत
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
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