बैरी बदरवा

गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ।
हमरी अटरिया पे झाँकि दिखावें
हमहीं बुनियाँ को तरसें ॥
गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥

जाय के खेतवा से मटिया लै आई
बारे कुम्हरवा से घइला गढ़ाई
हमरी तलरिया से पनिया उड़ाय लिययँ
हमहीं पनियाँ का तरसैं ॥

भोर भए घनि-घनि खुब छावयँ
दुपहरिया म टपक दिखावयँ
साँझ परे अपने घर भागयँ
नान्ह चिरइयन जैसैं ॥

बैरी बदरवा का घर से भगाय दूँगी
अपनी अंटरिया से दूर उड़ाय दूँगी
जहाँ से आए हो वहीं लवट जावो
जौने रहिया डगर से ।
 गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥

गोइंड़े- नज़दीक ही
बुनियाँ- बूँदें

**जिज्ञासा सिंह**

मेरे नैनों में श्याम बस जाना

मेरे नैनों में श्याम बस जाना,
मैं दर्पण बहाने देखूँ ॥

कारी कारी अँखियों में प्रीति बसी है, 
अधरों पे मुस्कान ऐसी सजी है,
जैसे कोयल है गाए तराना,
मैं फूलन बहाने देखूँ ॥
 
मैं राधा रानी, बनूँ तेरी रानी,
जग में अमर होगी अपनी कहानी,
कान्हा मेरे हृदय बस जाना,
मैं धड़कन बहाने देखूँ ॥

बहियाँ पकड़ कान्हा साथ चलूँगी,
बनके बसुरिया मैं रोज बजूँगी,
तुम जमुना किनारे आना,
मैं गउअन बहाने देखूँ ॥

कुंज गलिन में, सखियाँ बुलाऊँगी, 
रास रचाऊँगी, तुमको रिझाऊँगी,
तुम माखन चुराने आना
मैं ग्वालन बहाने देखूँ ॥

**जिज्ञासा सिंह**

शिव जी का भजन


शिव आए मेरे द्वारे मस्तक पर गंगा धारें                

मैं मृग छाला ले आई 

और प्रभु का आसन बिछाई       

चरण गंगा के जल से पखारे,

मस्तक पर गंगा धारे 


शीश चंदा बड़ा है निराला,

गले सोहे है सर्पन की माला 

हाथों से डमरू बजा रे

मस्तक पर गंगा धारे   


लगा धरती पे अद्भुत मेला

प्रभु वंदन की सुंदर बेला  

माह सावन का धूम मचा रे

मस्तक पर गंगा धारे  

           

ठाढे हैं सकल नर नारी

त्रिपुरारी रहे निहारी                  

बर माँगे है सीस नवा रे

मस्तक पर गंगा धारे 

**जिज्ञासा सिंह**