न भूले न भूले न भूले रे
मोहे आजी के देवता न भूले रे॥
आजी के देवता बिरवना बिराजें।
आजी के देवता फुलववा बिराजें
पाती-पाती देवी औ साखा-साखा देवा
तुलसी बियहवा न भूले रे॥
रहिया चलत आजी कौआ मनावें
गइया बछउआ कुतउआ मनावें
सबही म देवता सबही म पुरखा
कुआँ-बगिया गवनवा न भूले रे॥
बढ़नी औ झाड़ू लय नजर उतारें
सिलबटिया न्योछावर उवारें
मूसर ओखरिया खैलर डलउआ
जले दियना सुपउआ न भूले रे॥
जर और बोखार आजी निमियाँ मनावें
पेटवा पिराय आजी सुरजा मनावें
नैहर आवें जो बुआ औ बहिनिया
गुड़ लौंग ढरकौना न भूले रे॥
जिज्ञासा सिंह
वाह! जिज्ञासा जी ,बहुत खूबसूरत लोकगीत !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सखी।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 20 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार और अभिनंदन आदरणीय।
हटाएंजिज्ञासा जी, आपकी बदौलत लोकगीतों की सहज मिठास हम तक पहुँचती है। इस दौलत का कोई पर्याय नहीं। उपदेश नहीं, जीवनचर्या का सहज उपक्रम हैं ये। ये दिल मांगे मोर !
जवाब देंहटाएंइतनी सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार प्रिय सखी।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंअपनी संस्कृति की झलक समेटे बहुत सुन्दर लोक गीत। वैसे तो लोक गीत तो अब कम ही सुनने को मिलते हैं।
जवाब देंहटाएंआभार।
रहिया चलत आजी कौआ मनावें
जवाब देंहटाएंगइया बछउआ कुतउआ मनावें
सबही म देवता सबही म पुरखा
कुआँ-बगिया गवनवा न भूले रे॥
लोकगीतों में हमारी पुरातन संस्कृति झलकती है ।
बहुत सुन्दर लाजवाब
वाह! आनंद आ गया!
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