महावर, नाखुर गीत (अवधी लोकगीत)

रगरि रगरि धोवे गोड़ कहारिन,
अरे नाउन आई बोलाइ, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

दूर देस सखि रंग मंगायंव, 
मेहंदी मंगायंव मारवाड़, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

केहू कहे चिरई, तव केहू कहे सुग्गा,
केहू कहे चंदा बनाओ, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

सोनेन की नाऊ लाए हैं नहन्नी,
चांदी सींक सलाई, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

रचि रचि रंग भरे है नउनिया,
मेहंदी लगाई मनुहारि, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

दसरथ दीन्हें हैं अनधन सोनवा, 
कौसल्या मोतियन हार, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

झूमि झूमि नाऊ लेहि बलैया,
नाउन नाचें झलकारि, रमन जी कै आजु है नाखुर ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द    अर्थ
रमन जी : भगवान राम
नाखुर :  नाखून कटना
गोड़  :   पैर
चिरई : चिड़िया
सुग्गा : तोता
नहन्नी : नाखून काटने का औजार
बलैया : दुआ, आशीर्वाद
झलकारि : झूम झूम, मगन हो

मेला में पत्नी का बिछुड़ना (लोकगीत)


मोरी धनियाँ मेला म हेराय गईं ।

अगवा से हम चलैं पीछे मोरी धनियाँ,
न जाने कैसे डगरिया भुलाय गईं ।

पहली बार धना घर से हैं निकरी,
भीर देखते बहुत घबराय गईं ।

नदिया नहरिया धनै बहु भावे
बीच गंगा म डुबकी लगाय गईं ।

लड्डन हलवैया बनावे मिठैया
रसही जलेबी देखि ललचाय गईं ।

खस्ता बसाता उन्हें बहु भावे,
एक दर्जन गपागप खाय गईं ।

सुरमा दुकनियाँ क रहि रहि ताकें,
दाम सुनते बहुत खिसियाय गईं ।

लड़िकन खिलौना सबहि कुछ बेसहैं,
लै के पिपिहिरी वे पीं पीं बजाय गईं ।l

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
धना, धनियाँ: पत्नी
हेराय: खोना, बिछुड़ना
बेसहैं: खरीदना
पिपहिरी: बांसुरी, सींटी के जैसा वाद्ययंत्र
रसही: रसीली
लड़िकन: बच्चे
बसाता: गोलगप्पे

विवाह गीत: मंडप छाजन (बियाहू: अवधी)

पनवा औ केलवा के मंड़वा छवैबे, बँसवा के खम्भ गड़ाय रे ।
अमवा की पतिया म बाँधि कलावा, बंदनवार सजाय रे ।।

चारो कोने कलस म नीर भरैबे, गंगा मैया से मंगाय रे ।
कलस के ऊपर चौदिस दियना, देबै सखी आजु बारि रे ।।

आओ कागा आओ नेवत देइ आओ, बिरना का मोरे बोलाय रे ।
पहला नेवत मैंने गनपति दीन्हों, दूजा नैहर भिजवाय रे ।।

तीसरा नेवत सखी टोला परोसी, संग दीन्हों सब रिस्तेदार रे ।
यही रे मांड़व बीच सबही बिठइबे, चंदन तिलक लगाय रे ।।

बर और कन्या बैठें चंदन चौकिया, सब कोई देहि आसीस रे ।
चाँद सुरज जैसी जोड़ी अमर हो, जीयहिं लाख बरीस रे ।।

**जिज्ञासा सिंह**

जोति जले तुलसी छैयाँ

जोति जले तुलसी छैयाँ 
ओ रामा जोत जले है।
जगमग करे है डगरिया
हो रामा गाँव जगे है ।।

पपिहा गावे दादुर गावे,
गीत सुनावे कोयलिया 
ओ रामा मोर नचे है ।।

एकादशी की छाई है तरई,
दूर दिखे है उँजेरिया 
हो रामा चाँद छुपे हैं ।।
 
आओ सखी आओ दियना जराओ,
कटि जाय रैन अँधेरिया
सुरज कहीं दूर बसे हैं ।।

एकहि जोति तिमिर घन काटे,
जैसे अंबर म चँदनिया
हो रामा छाई दिखे है ।।

जोति जले पीपल छैयाँ,
हो रामा जोति जले है ।।

**जिज्ञासा सिंह**

गंगा पूजन (लोकगीत)


सखी री मैं तो पूजन जाऊँ गंगा

हाथ में मेरे कलश विराजे
चुड़ियाँ छन छन बाँह में बाजे
माथे पे बिंदिया लाल चुनरिया 
गोटा लगा है सतरंगा
सखी....

सब कहें गंगा दूर बसी हैं
पर मोरे हिरदय आय लगी हैं
मातु पिता सम मुझको प्यारी 
करतीं मन मोरा चंगा
सखी....

आरती बंदन पूजन करती 
श्रद्धा भक्ति अर्पन करती 
सूरज की किरणों की छवि से 
बूंद बूंद है रंगा
सखी....

जीवन मृत्यु सभी कुछ जल से
गंगा के आशीष औ फल से
अपना जीवन स्वर्ग बनाऊँ 
अब तक था बेरंगा
सखी....

**जिज्ञासा सिंह**