घर पिछवारे परा अँधेर.. अवधी लोकगीत



घर पिछवारे परा अँधेर 

घर पिछवारे रहयँ गरीबिन
नाउन धोबिन लोधिन महरिन
सुनौ सास तनी देखि के आओ
काहे दियना नाहीं बारिन
गौधिरका कय आई बेर

कलिहाँ देखा जात रहीं सब
जोर-जोर बतुआत रहीं तब
न राशन न मिला तेल है
दिया दिवारी का होई अब
कोटा आवे म अबहिंव देर

देवतन का लड़ुअन कय आसा
अम्मा माँगें खील-बतासा
लड़िके चुटपुटिया का लोटयँ
पापा झूरय दिययँ दिलासा
मम्मी का सब बइठे घेर 

मर मजदूरी कै अकाल हय 
मनरेगव अबकी बेहाल हय
एक दिहाड़ी दुइ मजूर पर 
रिक्सा टेम्पू केयू न पूछय 
हय गरीब कय ढेरम ढेर 

जिज्ञासा सिंह 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुतै नीक लिखेव है। गरीबन कै त्यौहार ऐसने होत है।

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  2. कितना अच्छा लिखती हैं आप! हर शैली लाजवाब!

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 02 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  4. सुन्दर लोकभाषा गीत.नमस्ते. जन्मदिन की शुभकामनायें

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