देस देस से आवे बरतिया,
बगिया म मोरे छहाँय ।
बाबा ने मोरे है कुअना खोदावा,
पनिया जे पियहिं जुड़ायँ।।
कुअना औ बगिया के ब्याह रचावें बाबा,
धूम मची है घर गाँव ।
अमवा की डारि चढ़ि बैठी कोयलिया,
गौआ खड़ी जूड़ि छाँव ॥
कोयलरि उड़ि बैठी गौआ की सिंगिया,
खुसुर फुसुर करे बाति ।
सुनो मोरी गुइयाँ बगिया दुआरे,
आई कुआँ की बराति ॥
आजु रैन मैं गैहौं बियाहू,
भइल भिनुसार सुहाग ।
मँगिया भरल मोरी बगिया के सेंदुरा,
पाँव महावर लागि ॥
लहर लहर चले आगे आगे कुअना,
पिछवा बगियवा हरियाय ।
दादी हमारी नीर भरहि गगरिया,
बाबा क जियरा जुड़ाय ॥
**जिज्ञासा सिंह**
शब्द - अर्थ
छहायँ - छाँव
खोदावा - खोदना
जूड़ि - ठंडी
भिनुसार - भोर, सुबह
बहुत रोचक और सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंबहुत सुंदर ♥️🌻
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंरचना के चयन के लिए हृदयतल से धन्यवाद ।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
रोचक और आंचलिक बातों के माध्यम से सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत कमाल है ...
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना
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