ई बीवी जी का जंजाल हो (अवधी नकटौरा का गीत)


ई बीवी जी का जंजाल हो…रोजय ताना मारे 

बड़े प्रेम से ब्याह के लाया                                   
साड़ी औ कपड़े, गहने दिलाया ।                             
सज के पड़ोसी के ठाढ़ हो, रोजय ताना मारे              
ई बीवी....

बड़े शौक से होटल ले आया                               
मोमोज, पिज्जा, बर्गर मंगाया                               
बैठी गपागप खाय हो, रोजय ताना मारे                   
ई बीवी...

बड़े शौक से पिक्चर ले आया                           
पिक्चर उसको “राज़ी” दिखाया                              
बिक्की कौशल पे मचली जाय हो, रोजय ताना मारे।            
ई बीवी...

एरोप्लेन का टिकट कराया                               
दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता घुमाया                              
वो तो लंदन पे मचली जाय हो, रोजय ताना मारे।       
ई बीवी...

ऐसी बीबी पाय अघाए                                     
बतिया मोरी समझ न पाए                                   
मोरी बोली सुने गुर्राय हो, रोजय ताना मारे ।                
ई बीवी…

**जिज्ञासा सिंह**           
शब्द- अर्थ 
नकटौरा- लड़के के विवाह की एक रस्म जो बारात जाने के बाद महिलाएँ मनोरंजन के तौर पर मनाती हैं ।    

मेरी सौ सौतानियाँ


तर्ज: नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूँढूँ रे सांवरिया

साजन को घेरे रहती हैं, मेरी सौ सौतनियाँ ।
देख देख मैं जल भुन जाऊँ, सुलगूं बन अगिनियाँ ॥

सुबह सवेरे चाय बनाऊँ, ले के जाऊँ पिय के पास।
देखि देखि सौतन का परचम, मनवा मेरा रहे उदास ॥
अखबारों में मुंडी डारे, हाथ में कितबिया ॥

बगल रखा मोबाइल घन घन,घंटी मारे मिनट मिनट पर ।
सूप्रभात का मैसेज लेके, आवैं गोरी व्हाट्सएप पर ॥
जैसे घूरूँ साजन बोलें, हैं बीमा कंपनियाँ ॥

हाय बेरहम मित्रमंडली, रोज सवेरे आ जाती है ।
अदरक लेमनग्रास की चइया,भरभर के कप पी जाती है॥
गप्प मारते जब वे हँसके, तड़पूँ ज्यों मछरियाँ ॥

पहले पेपर, मित्र थे सौतन, अब मोबाइल फ़ोन है ।
डाटा, नेट ज्यों खत्म हुआ, मुआँ वाई फाई ऑन है।।
फोन टच सहलावें ज़ालिम, लोटे है नागिनियाँ ।।

**जिज्ञासा सिंह**

कुआँ और बगिया बियाह.. (अवधी बियाहू)


देस देस से आवे बरतिया, 
बगिया म मोरे छहाँय ।
बाबा ने मोरे है कुअना खोदावा, 
पनिया जे पियहिं जुड़ायँ।।

कुअना औ बगिया के ब्याह रचावें बाबा, 
धूम मची है घर गाँव ।
अमवा की डारि चढ़ि बैठी कोयलिया, 
गौआ खड़ी जूड़ि छाँव ॥

कोयलरि उड़ि बैठी गौआ की सिंगिया, 
खुसुर फुसुर करे बाति ।
सुनो मोरी गुइयाँ बगिया दुआरे, 
आई कुआँ की बराति ॥

आजु रैन मैं गैहौं बियाहू, 
भइल भिनुसार सुहाग ।
मँगिया भरल मोरी बगिया के सेंदुरा, 
पाँव महावर लागि ॥

लहर लहर चले आगे आगे कुअना, 
पिछवा बगियवा हरियाय ।
दादी हमारी नीर भरहि गगरिया, 
बाबा क जियरा जुड़ाय ॥

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द - अर्थ
छहायँ - छाँव
खोदावा - खोदना
जूड़ि - ठंडी
भिनुसार - भोर, सुबह

कान्हा की पैजनियाँ (लोकगीत)


मोरे कन्हैया की बाजे पैजनियाँ
झूम झूम जाएँ यशोदा जी रनियाँ

प्यारे कन्हैया का खूँटे मे बाँधि आई
बक्से म कोने छुपाई पैजनियाँ
खूँटा छुड़ाया, पैजनियाँ चुराया
पहन पहन नाचे ये संग नाचें गोपियाँ ॥

यहि रे पैजनियाँ म नन्हें नन्हें घुँघरू
सोने की लड़ी लगी, लगी कई कड़ियाँ
पहन पहन कान्हा सबहि ललचावे
माँग रहीं राधा, न देवे कन्हैया ॥

वही पैजनियाँ पे राधा जी रूठ गईं ।
कहें कान्हा अइहौं न तोहरी नगरिया
मातु जशोदा के घर चली जैहौं
माँगि लैहौं धीरे से तोरी पैजनियाँ ॥

पहिन पैजनियाँ मैं गोकुल म घुमिहौं
देखि देखि जरिहैं तुम्हारी सारी सखियाँ
तोसे कहूँ कान्हा मोहे न चिढ़ैहौ
फेंक देहौं जमुना म तोरी पैजनियाँ

** जिज्ञासा सिंह**