छब्बिस जनौरी के दिनवा,
सखी री एक लडुआ खिलाय दियो रे ।
यही रे दिना गणतंत्र बना था
झंडा हमारा अकास छुआ था
लड़िकन का तनी ई बताओ फौज
की गाथा सुनाय दियो रे ।
केतने सहीद भए केतने हेराने
केतने बिछुड़ गए हमहूँ न जाने
घरा वाले रहिया अगोरें सखी री
यहि देसवा पे मिट गए रे ।
बड़ी मुस्किल से आजादी मिली थी
कीमत बड़ी ही चुकानी पड़ी थी
केहू न बच्चन का बतावे सेनानी
कैसे देसवा बचाय गए रे ।
स्कूल विद्या से कुछू नाहीं जनिहैं
खाली कमैहैं औ घर का चलैहैं
मास्टर औ मुंसी न बतावें सखी रे
माँ के फर्ज निभाय दियो रे ।
हम तुम हैं माँ, सखी भारत भी माता
केहू नाहीं भक्ती देस की गाता
अपने से पहिले आपन देसवा
सखी री यही लड़िकन बताय दियो रे
छब्बिस जनौरी के दिनवा,
सखी री एक लडुआ खिलाय दियो रे ।
शब्द: अर्थ
लडुआ: लड्डू
अकास: आसमान
हेराने: खो जाना
अगोरें: इंतजार करना
लड़िकन,बच्चन: बच्चे
मुंसी: टीचर
**जिज्ञासा सिंह**