सागर का दीवान कौन है ?

 

साधो ! मन ना कहिए जाई

तन आभूषण देखि लोभइहैं

मन देइहैं बिसराई 


कित डूबे, कित बहि उतराने

नदियाकौन से सागर छाने

केहि नौका पे बैठि चले पिय

किनकी गही कलाई 


काहे पे भरमेकब बेल्हमाने

देखे कितने ठौर ठिकाने

चढ़ि आसन नौ मन इतराने

उतरत पीर बढ़ाई 


ये जीवन सागर सम गहरा

घाट-घाट पर उनका पहरा

सागर का दीवान कौन है

देखी का परछाई ?


अब जानी मन के भरमन को

साँच-झूठबिचरत जीवन को

एक-एक पग क़ीमत डग की

देन परत उतराई 


**जिज्ञासा सिंह**

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत रचना! प्रिय मैम!

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  2. जिज्ञासा सिंह6 दिसंबर 2022 को 10:51 pm बजे

    दादी को सुनाना प्रिय मनीषा.. बहुत आभार अनुजा🌺🌺

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    1. मैं घर पर नहीं हूँ लखनऊ हूँ जब जाऊंगी तो जारूर सुनाऊंगी!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (8-12-22} को "घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  4. जीवन को गहराई से देखने की कला सिखाती सुंदर रचना

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  5. आदरणीया जिज्ञासा जी ! नमस्कार !
    .....सागर का दीवान कौन है !!!!
    अद्भुत.........
    लोक भाषा और तत्सम शब्दावली से कई बिम्ब रचती उद्दात्त पंक्तियों के लिए बहुत अभिनन्दन !
    जय श्री कृष्ण !

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