गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ।
हमरी अटरिया पे झाँकि दिखावें
हमहीं बुनियाँ को तरसें ॥
गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥
जाय के खेतवा से मटिया लै आई
बारे कुम्हरवा से घइला गढ़ाई
हमरी तलरिया से पनिया उड़ाय लिययँ
हमहीं पनियाँ का तरसैं ॥
भोर भए घनि-घनि खुब छावयँ
दुपहरिया म टपक दिखावयँ
साँझ परे अपने घर भागयँ
नान्ह चिरइयन जैसैं ॥
बैरी बदरवा का घर से भगाय दूँगी
अपनी अंटरिया से दूर उड़ाय दूँगी
जहाँ से आए हो वहीं लवट जावो
जौने रहिया डगर से ।
गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥
गोइंड़े- नज़दीक ही
बुनियाँ- बूँदें
**जिज्ञासा सिंह**