भूले नाहिं भूले वही रतिया
फिरंगी जब फाँसी सुनाई ।
फाँसी सुनाई सखी,
निंदिया न आई,
कैसे जियय उनकी माई।
फिरंगी जब फाँसी सुनाई ।।
वही रे सिपहिया के
जियरा की कौन कहूँ ?
सुनि सुनि पीर सखी
रोऊँ औ मौन रहूँ
देसवा का पहिरे, देसवा का ओढ़े रहे
देसवा की खातिर मौत खाई
फिरंगी जब फांसी सुनाई ॥
ऐसे मजबूत तीनों
नैना न नीर बहे
मातु पिता सब
घर कुर्बान अहे
चाँद सुरज संग चमके सितारा बन
अमर सपूत कहाई ।
फिरंगी जब फाँसी सुनाई ॥
अपने भगत सिंह
ऐसे बलिदानी रहे
राजगुरु औ
सुखदेव सेनानी रहे
नीव भरी आज़ादी की अपना ही खून देके
मुक्त ये धरती कराई
फ़िरंगी जब फाँसी सुनाई ॥
**जिज्ञासा सिंह**
अपने भगत सिंह
जवाब देंहटाएंऐसे बलिदानी रहे
राजगुरु औ
सुखदेव सेनानी रहे
नीव भरी आज़ादी की अपना ही खून देके
मुक्त ये धरती कराई
वीरों के वलिदान के फलस्वरूप ही आज ये आजादी की हवा में साँस ले पा रहे है,
सत-सत नमन वीर सपूतों को। अवधि भाषा में बहुत ही सुंदर सृजन जिज्ञासा जी
बहुत बहुत आभार कामिनी जी, आपकी प्रशंसा हमेशा उत्साहवर्धन करती है, स्नेह बनाए रखें सखी 💐💐
हटाएंबहुत भावपूर्ण रचना ......
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीदी, आपकी प्रशंसा हमेशा उत्साहवर्धन करती है, आपको नमन और वंदन💐💐
हटाएंबहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंकाश कि हमारे हुक्मरानों के दिलों में भी इन शहीदों के जैसा कुर्बानी का जज़्बा होता.
बहुत बहुत आभार आदरणीय ।आपकी प्रशंसा हमेशा उत्साहवर्धन करती है, आपको नमन और वंदन💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंमैं देख रहीं हूँ कि लोग हमारे वीरों की कुरबानी को भूल रहें हैं और जिस भारत कि उन्होंने ने सपना देखा था और जिसके लिए हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया उसे सपना ही बना रहने दे रहे हैं!ये सब देख कर मन बहुत ही विचलित हो उठता है😥
मेरे आदर्श सरदार भगत सिंह जी और बाकी स्वतंत्रता सेनानी पर इतनी भावपूर्ण रचना लिखने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद🙏💕
बहुत आभार प्रिय मनीषा ।
जवाब देंहटाएंपढ़ाई से समय निकाल ब्लॉग पर आने के लिए बहुत शुक्रिया।
मेरा स्नेहाशीष तुम्हारे लिए ।