जिज्ञासा के गीत
इस ब्लॉग में मैंने स्वरचित लोकगीतों को उद्घृत किया है ,जो उत्तर भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा हैं -
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जिज्ञासा की जिज्ञासा
गागर में सागर
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फौज हमय जिव-जान से प्यारी.. दो लोकगीत
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(१) सुन लेव पिताजी हमार, हमहूँ फौज मा जइबे। साहब बनब सरकार, नजर दुसमन कय गिरइबे।। हाथ म हम बन्दुखिया लेबै, अँखियाँ नाल म गड़इबे सरहद पर घुसप...
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सागर का दीवान कौन है ?
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साधो ! मन ना कहिए जाई तन आभूषण देखि लोभइहैं मन देइहैं बिसराई ॥ कित डूबे, कित बहि उतराने नदिया , कौन से सागर ...
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कतकी नहान (पूर्णमासी मेला)
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मेला लगा है बड़ी धूम, सुनो री सखी । इक्का न चलबै, तांगा न चलबै । पैदल चलबै झूम झूम, सुनो री सखी ॥ आगे न चलबै पीछे न चलबै । चलबै बनाई एक झुंड...
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देवी गीत..
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( १ ) चुपके चुपके आईं, भवानी मोरे अँगनवाँ भोर भये रवि आने से पहले , देख नहीं मैं पाई , भवानी मोरे अँगनवाँ...
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सोहर गीत..(हास्य व्यंग)
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(१) जच्चा हमारी कमाल.. लगें फुलगेंदवा। खाय मोटानी हैं चलि नहिं पावहि फूला है दूनो गाल.. लगें फुलगेंदवा। पांव है सिरकी पेट है गठर...
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बैरी बदरवा
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गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं । हमरी अटरिया पे झाँकि दिखावें हमहीं बुनियाँ को तरसें ॥ गोइंड़े ठाढ़े बदरऊ न बरसैं ॥ जाय के खेतवा से ...
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मेरे नैनों में श्याम बस जाना
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मेरे नैनों में श्याम बस जाना, मैं दर्पण बहाने देखूँ ॥ कारी कारी अँखियों में प्रीति बसी है, अधरों पे मुस्कान ऐसी सजी है, जैसे कोयल है गाए तर...
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