काजल देवी की जय हो!
जन्मदिन की बधाई❤️🌹
साँवरि सूरत मोहनि मूरत
नइना करें कमाल, बलमवा बढ़िया चाही।
मोरे मन की सुन लो अम्मा,
तुम्हें बताऊँ हाल, बलमवा बढ़िया चाही॥
घर चाहे कुछ छोटा हो,
सर्बिस धंधा मोटा हो,
छोटा-मोटा चल भी जाए
पर जिव का न खोटा हो
अपनी मीठी बतियन से
मोहे कर दे मालामाल, बलमवा बढ़िया चाही॥
डील-डौल से हट्टा-कट्टा,
देख दाँत हो सबका खट्टा,
मोरा मनवा मचल पड़े
हो ऐसा निराला पट्ठा
अँखियाँ हों चमकीली उसकी
चले नसीली चाल, बलमवा बढ़िया चाही॥
दिल्ली, बम्बई हमें घुमावे,
पिक्चर-सनिमा खूब दिखावे
जैसे ही कुछ माँगी मन का
तुरत कहीं से लेकर आवे
जइसे बोलूँ वइसे चलदे
रोज घुमावे माल, बलमवा बढ़िया चाही॥
पकड़ कलैया संग-संग घूमे,
डीजे पर नाचे औ दूमे,
चलूँ जिधर से पहन ओढ़ि के
हमरे आगे पीछे घूमे
आइस्क्रीम ऐसी खिलवावे
मुँहवा कर दे लाल, बलमवा बढ़िया चाही॥
जिज्ञासा सिंह
क्या बात है जिज्ञासा जी ! बहुत-ही प्यारा और मनभावन गीत रचा है आपने।
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत आभार जितेन्द्र भाई। ये बच्ची मेरे पास रहती है, उसी की फरमाइश पर ये अवधि लोकगीत लिखा है।
हटाएंअरे बाप रे i इस मापदंड पर हम तो कुआंरे ही रह जाते.
जवाब देंहटाएंअरे नही सर। ये तो एक लोकगीत है हमारी मेड के लिए, उसकी फरमाइश पर।
हटाएंवाह क्या बात है जिज्ञासा जी लोक गीतों की लुनाई बस-- लाजवाब।
जवाब देंहटाएंजी, सच कहा आपने! लोकगीत सरस और सहज होते है, और बहुत जल्दी निज से जोड़ देते हैं।
हटाएंबहुत आभार आपका
बलमवा बढिया चाही .. वाह आनन्द दायी गीत .
जवाब देंहटाएंदीदी ये लोकगीत अपनी मेड की फरमाइश पर लिखा है। तारीफ़ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंजी, आभार दीदी😅
जवाब देंहटाएंवाह !! जवाब नहीं आपकी लेखनी का .., लाजवाब सृजन जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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