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जयमाल गीत

करि सोलह सिंगार, पिया जी की राह निहारूँ ।

दर्पण देखूँ, देखि लजाऊँ ।
अपने पिया की छवी सजाऊँ ।
जैसे राजकुमार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

सिर पे पगड़ी, बाँधी होगी ।
टीका चंदन रोली होगी ।।
अँखियाँ करेंगे कजरारि, पिया जी की राह निहारूँ ।।

हाथी घोड़ा साज पिया जी ।
सोलह कहारों वाली पलकी ।।
बैठ के आएँगे द्वार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

मुझको निहारेंगे साजन जी ।
दिल में बसाएँगे साजन जी ।।
डालेंगे जयमाल, पिया जी की राह निहारूँ ।।

हमरी बिंदिया, हमरा कजरा ।
हमरी नथिया, हमरा गजरा ।।
उनसे सब सिंगार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

करि सोलह सिंगार, पिया जी की राह निहारूँ ।।

**जिज्ञासा सिंह**

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सरस और भावपूर्ण गीत प्रिय जिज्ञासा जी। दुल्हन के मनोभावों को बड़ी सार्थकता से अभिव्यक्त किया है आपने। सादर आभार और शुभकामनाएं आपको ❤️❤️💐💐

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-02-2022) को चर्चा मंच      "यह है स्वर्णिम देश हमारा"   (चर्चा अंक-4336)      पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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    1. चर्चा मंच में गीत के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सर ।आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  3. दुल्हन के मन के भावों को सुंदर गीत में ढाला है ।

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  4. आपका गीत पढ़कर हम तो सीधे उसी दरवाजे पर जाकर खड़े हो गए दोबारा ...वाह जिज्ञासा जी अद्भुत मनोभावों का सटीक वर्णन

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  5. दुल्हन के मन के भाव को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने! मंडप और दुल्हन की तरह बहुत ही खूबसूरत रचना! एक-एक पंक्ति बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है आपने मैम 💐

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  6. प्रेम और श्रृंगार रस में डूबी सुन्दर रचना ...
    मन के भावों को जैसे पंख लगा दिए और आसमां में विचरण के लिए छोड़ दिया ...

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