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जग छिड़ गइ लड़ाई (लोकगीत)


कि हाँ जग छिड़ गइ लड़ाई ।
चलो गुइयाँ सिव का मनाय लेई
बड़ी बिपदा है आई ।
कि हाँ जग छिड़ गइ लड़ाई ।।

हमने कही सखि सब जग अपना
जादा के तू नाहीं देखव सखी सपना
का मिलिहैं का लइके जैहैं
खाली हाथ जग जाई ।।

खग औ बिहग सबै केउ ब्याकुल
देस बिदेस हर एक कुनबा कुल 
अइसा जुद्ध जे छेड़े बिदेसी
हमरी आँख भर आई ।।

नान्हें नान्हें लड़िका धुआँ सने हैं
घर फुलवरिया जले पड़े हैं
मर्द मेहरुआ सब मरि कटि जाएँ 
ऐसी मिसाइलि चलाई ।।

यहि संसार गुमान भरा है
साँति औ संयम संदेस हमरा है
नाहीं तो दुनिया है बम पर बैठी
सीधे सरग का जाई।।

हम अपने सिव का सबै कुछ बतइबै
गलती क अपने क्षमा माँगि अइबै
हमरे देस ऐसी बिपदा न डारेव
तोहरे सरण भोले आई ।।

हमरे त भोले सखी बड़ बड़ दानी
दुनिया की वय समझयं नादानी
जे केउ उनके सरण म आवे
सबकी मुसीबत मिटाई ।।

कि हाँ जग छिड़ गइ लड़ाई ।।

**जिज्ञासा सिंह**
शब्द: अर्थ
गुइयाँ: सखी, सहेली
सरग: स्वर्ग
मेहरूआ: स्त्री, औरत
सरण: शरण
साँति: शांति 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब !
    साहिर ने जंग को ख़ुद एक मसला (समस्या)कहा है. भला उससे किसी मसले का हल कैसे निकलेगा?

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  2. सही कहा आपने । आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय 👏💐

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 02 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. इस गीत को "पांच लिंकों का आनन्द" में चयन करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी,शिवरात्रि के पावन पर्व पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐👏

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  5. हम अपने सिव का सबै कुछ बतइबै
    गलती क अपने क्षमा माँगि अइबै
    हमरे देस ऐसी बिपदा न डारेव
    –उम्मीद करते हैं कि ना आये भारत पर बिपदा
    लेकिन नियति पर भरोसा नहीं
    °°
    –सुन्दर रचना

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  6. युद्ध की विभीषिका पर हृदय स्पर्शी रचना।
    बहुत सुंदर।

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  7. दिल को छूती हुई बहुत ही मार्मिक लोकगीत!
    निशब्द हूँ जो हो रहा है उसे देखकर!

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