भाँवरी हो रही रघुवर की ।
भाँवरी हो रही सिया वर की ।।
पहली भाँवरी देवों को अर्पित, कृपा सदा रहे गौरीशंकर की ।
भाँवरी हो रही.....।।
दूजी भाँवरी प्रकृति को अर्पित, छाँव रहे जीवन में तरूवर की ।
भाँवरी हो रही.....।।
तीजी भाँवरी पृथ्वी को अर्पित, बखारें भरी रहें इस घर की ।
भाँवरी हो रही......।।
चौथी भाँवरी मेघों को अर्पित, फुहारें पड़ती रहें पुष्कर की ।
भाँवरी होर रही......।।
पांचवीं भाँवरी अग्नि को अर्पित,ज्योति सदा जगमग हो इस घर की ।
भाँवरी हो रही......।।
छठी भाँवरी परिजन को अर्पित, दुआयें मिलती रहे प्रियवर की ।
भाँवरी हो रही.....।।
सातवीं भाँवरी बन्ना बन्नी की,बनी रहे जोड़ी कन्या वर की ।
भाँवरी हो रही......।।
भाँवरी हो रही सिया वर की......।
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (20-12-2020) को "जीवन का अनमोल उपहार" (चर्चा अंक- 3921) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूँ.हार्दिक शुभकामना सहित.जिज्ञासा सिंह...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय आलोक सिन्हा जी, नमस्कार!मेरे गीत की सराहना करने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ..सादर नमन..
हटाएंजिज्ञासा जी, आप इनका ऑडियो भी बनाया कीजिए ताकि हम और अधिक परिचित हो सकें...बहुत अच्छा कर रही हैं आप...
जवाब देंहटाएंप्रिय अलकनंदा जी,नमस्कार ! आज़ मैंने एक देशभक्ति का लोकगीत इस ब्लॉग पर आप जैसे स्नेही मित्रों के प्रेम से अभिभूत होकर डाला है, आशा है आप ज़रूर सुनेंगी..आपके स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह..
हटाएंजी, अलकनंदा जी आपका सुझाव बहुत अच्छा है, मैं कोशिश करती हूँ, कि आप को ये गाने सुनने को मिलें..मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि आप जैसे लोग मेरे गीतों की सराहना कर रहे हैं..इससे महसूस होता है कि हम जैसे इन गीतों के शौकीन लोग हैं, सच में हृदय से आपकी प्रतिक्रिया का अभिनंदन करती हूँ..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंमाधुर्य पूर्ण गीत....
जवाब देंहटाएंलोक परम्पराओं को शब्दों में संजोने का महत्वपूर्ण कार्य..
साधुवाद है आपको जिज्ञासा जी 🌷🙏🌷
आपका बहुत-बहुत आभार शरद जी..आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन..!
हटाएंलोक परम्पराओं की अपनी अलग ही सुंदरता है विशेषतः विवाह गीतों में, सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी, एक सुन्दर संदेश के साथ की गई आप की प्रशंसा का स्वागत करती हूँ..सादर नमन..!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर l
जवाब देंहटाएंआपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं l
बहुत बहुत आभार मनोज जी, शुभ कामना सहित जिज्ञासा सिंह..
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जवाब देंहटाएंभाँवरी हो रही रघुवर की ।
भाँवरी हो रही सिया वर की ।।,,,,।।बहुत सुंदर गीत ,नव वर्ष की शुभकामनाएँ,
मधूलिका जी, आपकी स्नेहपूर्ण प्रशंसा के लिए हृदय तल से आभारी हूँ..समय मिले तो मेरे ब्लॉग जिज्ञासा की जिज्ञासा पर अवश्य भ्रमण करें..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विवाह-गीत रचा है जिज्ञासा जी आपने । लोक-संस्कृति ऐसे ही प्रयासों से अक्षुण्ण रह सकती है । अभिनंदन आपका ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका जितेन्द्र जी, आपकी निरंतर उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया कुछ नया सृजित करने की प्रेरणा देती है ब्लॉग पर आपके स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह..
हटाएंबहुत सुंदर जिज्ञासा जी। दुल्हे के रूप में प्रत्येक दुल्हा रघुवर के रूप में होता है तो दुल्हन सीता माता के रूप!! सप्तपदी में प्रत्येक फेरे के साथ विभिन्न देवों का पूजन -अर्चन हमारा शाश्वत संस्कार है। अत्यंत मधुर गीत👌👌👌 लोकरंग की मिठास से भरपूर!!! हार्दिक शुभकामनाएं आपको।
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी, आपकी रचना के सन्दर्भ में दी जाने वाली प्रतिक्रिया, आपके उस विषय के ज्ञान और रुचि को दर्शाता है, हमेशा मार्गदर्शन करती रहें..ईश्वर से यही कामना है.सादर..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत..मनमोहक रचना..
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
बहुत आभार प्रिय अमृता..
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी, ..बहुत अच्छा कर रही हैं आप...
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार ..आपकी मनोबल बढ़ाती प्रशंसा कुछ ने लिखने की प्रेरणा बनेगी..कृपया स्नेह बनाए रखें..
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